यातना की स्मृति भर भी थरथरा देने वाली है

यातना की स्मृति भर भी थरथरा देने वाली है

 


परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय मेजर धन सिंह थापा  की आज पुण्यतिथि है।

1962 के भारत-चीन युद्ध में जिन चार भारतीय बहादुरों को परमवीर चक्र प्रदान किया गया, उनमें से केवल एक वीर उस युद्ध को झेलकर जीवित रहे, उस वीर का नाम धन सिंह थापा था जो 1/8 गोरखा राइफल्स से, बतौर मेजर इस लड़ाई में शामिल हुए थे। धन सिंह थापा भले ही चीन की बर्बर सेना का सामना करने के बाद भी जीवित रहे, लेकिन युद्ध के बाद चीन के पास बन्दी के रूप में जो यातना उन्होंने झेली, उसकी स्मृति भर भी थरथरा देने वाली है। धन सिंह थापा इस युद्ध में पान गौंग त्सो (झील) के तट पर सिरी जाप मोर्चे पर तैनात थे, जहाँ उनके पराक्रम ने उन्हें परमवीर चक्र के सम्मान का अधिकारी बनाया।

उन्हें यह सम्मान सन 1962 में मिला।उनका जन्म: 10 अप्रैल, 1928 एवं मृत्यु 6 सितम्बर, 2005 को हुयी।

 मेजर थापा लम्बे समय तक चीन के पास युद्धबन्दी के रूप में यातना झेलते रहे। चीनी प्रशासक उनसे भारतीय सेना के भेद उगलवाने की भरपूर कोशिश करते रहे। वह उन्हें हद दर्जे की यातना देकर तोड़ना चाहते थे, लेकिन यह सम्भव नहीं हुआ। मेजर धनसिंह थापा न तो यातना से डरने वाले व्यक्ति थे, न प्रलोभन से।

देश लौटकर सेना में आने के बाद मेजर थापा अंतत: लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक पहुँचे और पद मुक्त हुए। उसके बाद उन्होंने लखनऊ में सहारा एयर लाइंस के निदेशक का पद संभाला।

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