निजीकरण हेतु जारी किए गए आरएफपी डॉक्यूमेंट से बड़े घोटाले की आशंका
निजीकरण के विरोध में काली पट्टी बांधने का अभियान जारी रहेगा
By संजय यादव
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नयी दिल्ली - उत्तर प्रदेश के दो विधुत वितरण निगमों के निजीकरण की चल रही प्रक्रिया में शंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं। प्रक्रिया के लिए जारी कागजात की कई लाइने सवाल पैदा कर रही हैं। जिसका उत्तर मिलना फिलहाल संभव तो नहीं दिख रहा है लेकिन विद्युतकर्मियों का उबाल जरूर बढ़ा रहा है। आईएएस प्रबंधन के प्रति बढ़ रही अविश्वनियता प्रदेश में औधोगिक अशांति की ओर इशारा कर रही है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के आवाहन पर निजीकरण के विरोध में काली पट्टी बांधने का अभियान पूरे सप्ताह जारी रहेगा। 15 जनवरी को भी पूरे दिन बिजली कर्मी काली पट्टी बांधकर काम करेंगे और भोजनावकाश या कार्यालय समय के उपरान्त सभी जनपदों और परियोजनाओं पर विरोध सभाएं करेंगे।
बड़े घोटाले की तैयारी
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने आज जारी बयान में कहा कि निजीकरण हेतु पावर कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा जारी बिडर के चयन के आर एफ पी डॉक्यूमेंट को पढ़ने पर साफ हो जाता है की बिजली के निजीकरण को लेकर बड़े घोटाले की तैयारी है। उन्होंने कहा कि निजीकरण हेतु समय सीमा पर बहुत स्ट्रिक्ट रहने की बात बार बार लिखी गई है जिससे यह स्पष्ट है कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन का उद्देश्य सुधार नहीं अपितु कैसे भी जल्दी से जल्दी निजीकरण करना है। बिजली व्यवस्था में सुधार का पूरे आर एफ पी डॉक्यूमेंट में एक बार भी उल्लेख नहीं किया गया है।
निजीकरण का मंसूबा आया सामने
संघर्ष समिति ने कहा कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन विगत दो माह से कह रहा है कि कोई निजीकरण नहीं किया जा रहा है। सुधार हेतु केवल निजी क्षेत्र की भागीदारी का निर्णय है किन्तु आर एफ पी डॉक्यूमेंट में साफ लिखा है कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम एवं पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का पी पी पी मॉडल पर निजीकरण किया जाना है जिसमें निजी कम्पनी की बहुसंख्यक इक्विटी और प्रबंधन नियंत्रण होगा। यह साफ तौर पर 42 जनपदों की बिजली व्यवस्था का पूरी तरह
निजीकरण है।
पहले से है नाम तय
संघर्ष समिति ने कहा कि बिडर का चयन क्वालिटी एंड कॉस्ट बेस्ड सिलेक्शन के आधार पर किया जा रहा है जिसमें चयन का अधिकार लगभग प्रबंधन के पास होता है ।ऐसा लगता है प्रबंधन ने पहले से ही नाम तय कर रखा है और टेंडर एक औपचारिकता मात्र है।
निजीकरण है विफल
संघर्ष समिति ने कहा कि पी पी पी मॉडल पर दिल्ली और उड़ीसा में बिजली वितरण का निजीकरण किया गया जो प्रयोग विफल साबित हुआ है। उड़ीसा में 1999 में बिजली का निजीकरण किया गया था और निजी कंपनी रिलायंस का लाइसेंस पूरी तरह विफल रहने के बाद 2015 में रद्द किया गया 2020 में फिर टाटा पावर को उड़ीसा की विद्युत वितरण का काम सोपा गया है और आए दिन कर्मचारियों का उत्पीड़न हो रहा है । यह सब जानकारी उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों को अच्छी तरह से और वह किसी झांसे में आनेवाले नहीं है।
पावर सेक्टर के हित में नहीं
संघर्ष समिति ने कहा कि ऊर्जा जैसे अति महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजीकरण की जिद करके निजीकरण थोपना किसी भी प्रकार प्रदेश के और पावर सेक्टर के हित में नहीं है। यदि जबरिया निजीकरण थोपा गया तो इसके इतने भयानक दुष्परिणाम होंगे जिसकी प्रबंधन में बैठे हुए आईएएस अधिकारियों को कोई कल्पना नहीं है। आम जनता के और बिजली कर्मचारियों के हित में संघर्ष समिति निजीकरण वापस होने तक अपना संघर्ष जारी रखेगी।
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