सरकारी विफलता छुपाने को कर्मचारियों को बना रहे खलनायक: दिनकर कपूर
उत्तर प्रदेश में बिजली संकट गहराया
उत्तर प्रदेश में इन दिनों बिजली संकट सिर्फ एक तकनीकी या मौसमी समस्या नहीं, बल्कि सरकार की नीतिगत विफलताओं और निजीकरण की सुनियोजित साजिश का परिणाम बन चुका है।यह कहना है ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (AIPF) उत्तर प्रदेश के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर का, जिन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सरकार पर संकट को जानबूझकर पैदा करने और इसके जरिए निजीकरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। बताया कि पिछले एक सप्ताह से राज्य बिजली कटौती, ट्रांसफार्मर फेल्योर, और जन असंतोष की आग में झुलस रहा है। वहीं, ऊर्जा मंत्री एके शर्मा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस संकट के लिए बिजली विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को दोषी ठहराकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
सरकारी क्षेत्र को बदनाम कर निजीकरण का माहौल
विशेषज्ञों और जन संगठनों का मानना है कि यह संकट किसी आकस्मिक कारण से नहीं, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से पैदा किया गया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण से पहले सरकार बिजली व्यवस्था को अराजक बनाकर यह धारणा मजबूत कर रही है कि ‘निजी हाथों में बिजली व्यवस्था ज्यादा बेहतर’ होगी।
सस्ती सरकारी बिजली बंद, महंगी कॉर्पोरेट बिजली चालू
बिजली उत्पादन के सरकारी संयंत्रों जैसे हरदुआगंज, जवाहरपुर और पनकी में ‘थर्मल बैंकिंग’ के नाम पर जानबूझकर उत्पादन ठप कर दिया गया है। जबकि निजी कंपनियों से 7 से 19 रुपये प्रति यूनिट की महंगी बिजली खरीदी जा रही है। यह सीधा-सीधा सरकारी संसाधनों की उपेक्षा और निजी घरानों को लाभ पहुंचाने का मामला है।
भर्ती नहीं, उपकरण नहीं, फिर भी जिम्मेदार कर्मचारी!
राज्य में इस समय लगभग 40,000 पद रिक्त हैं, जिनमें इंजीनियर, फील्ड स्टाफ और तकनीकी कर्मी शामिल हैं। अनुरक्षण के लिए जरूरी उपकरण जैसे ट्रांसफार्मर, फ्यूज वायर, केवी वायर आदि की भारी कमी है। लेकिन इसके बावजूद कर्मचारियों पर अनुचित दबाव और जबरन स्थानांतरण की नीति अपनाई जा रही है।
ट्रांसफर से उत्पीड़न, निजीकरण विरोधियों को निशाना
जूनियर इंजीनियरों से लेकर संविदा कर्मियों तक, हजारों बिजलीकर्मियों को बिना तर्क के इधर-उधर कर दिया गया। आंदोलन में सक्रिय कर्मियों को दूरदराज के क्षेत्रों में भेजा गया। ये स्थानांतरण कर्मचारियों के मनोबल को तोड़ने और निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाने वालों को चुप कराने की रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं।
फर्जी ‘ऑटोमेशन’ और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ती सरकार
सरकार की ‘डिजिटलीकरण’ और ‘ऑटोमेशन’ की बातें महज दिखावा बनकर रह गई हैं। वहीं बिलिंग जैसे कार्यों को पूरी तरह आउटसोर्स एजेंसियों को सौंप दिया गया है, फिर भी कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जा रहा है। यह आरोप सरकारी तंत्र के निजीकरण के समर्थन में वातावरण बनाने की एक कोशिश भर है।
जन संवाद और व्यापक आंदोलन की दरकार
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने कहा कि वर्तमान बिजली संकट का मूल कारण योगी सरकार की जनविरोधी नीतियां हैं। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ईमानदारी से समस्या का समाधान चाहती है तो उसे चाहिए कि खाली पदों को तत्काल भरे,अनुरक्षण पर ठोस बजट आवंटित करे,मनमाने स्थानांतरण और उत्पीड़न बंद करे,पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण का फैसला वापस ले।
उन्होंने यह भी कहा कि बिजली संकट को लेकर कर्मचारियों को खलनायक बनाना और निजीकरण को नायक की तरह पेश करना, जनता के साथ एक धोखा है। यह समय है जब लोकतांत्रिक संगठनों और जनसमूहों को एकजुट होकर सरकार की इस दोहरी नीति का विरोध करना चाहिए।