विकसित यूपी के विजन में पब्लिक सेक्टर जरूरी
बिजली निजीकरण के विरोध में 14 अगस्त को तिरंगा रैली
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने कहा है कि जब प्रदेश विधानसभा में विकसित भारत और विकसित उत्तर प्रदेश विजन 2047 पर ऐतिहासिक चर्चा चल रही है, तब यह स्पष्ट करना जरूरी है कि इस विजन को साकार करने के लिए पावर सेक्टर को सार्वजनिक क्षेत्र में बनाए रखना अनिवार्य है। समिति ने योगी सरकार के पिछले आठ वर्षों में बिजली व्यवस्था में हुए उल्लेखनीय सुधारों का हवाला देते हुए निजीकरण प्रस्ताव को तुरंत रद्द करने की मांग की है।
14 अगस्त को रैली और सभा
संघर्ष समिति ने बताया कि निजीकरण के विरोध में 8 अगस्त से 15 अगस्त तक तिरंगा लेकर अभियान चलाया जा रहा है। इसी क्रम में 14 अगस्त को सभी जनपदों और परियोजनाओं पर बिजली कर्मी तिरंगा रैली निकालेंगे और सभाएं करेंगे। राजधानी लखनऊ में 14 अगस्त को शाम 4 बजे हाइडिल फील्ड हॉस्टल पर सभा होगी, जिसमें सभी कार्यालयों के बिजली कर्मी तिरंगा यात्रा के साथ पहुंचेंगे।
योगी सरकार में बिजली व्यवस्था में सुधार
समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों ने कहा कि ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि प्रदेश में बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और उपलब्धता में लगातार सुधार हुआ है। योगी सरकार बनने के समय बिजली की एटी एंड सी हानियां 42% थीं, जो अब राष्ट्रीय मानक 15% पर आ चुकी हैं। मई 2025 में उत्तर प्रदेश ने देश में सबसे अधिक विद्युत आपूर्ति का रिकॉर्ड बनाया, जो पहले महाराष्ट्र के पास था। वर्तमान में राज्य में 3 करोड़ 63 लाख बिजली उपभोक्ता हैं, जो देश में किसी भी प्रदेश से अधिक है।
गरीब इलाकों में निजीकरण पर सवाल
समिति ने कहा कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के 42 जिलों में प्रदेश की सबसे गरीब आबादी रहती है। पूर्वांचल में गरीबी और बुंदेलखंड में जल संकट के कारण सस्ती बिजली जनजीवन के लिए आवश्यक है, जो केवल सार्वजनिक क्षेत्र में संभव है। ऐसे में इन इलाकों पर निजीकरण थोपना अनुचित है।
निजीकरण के पीछे 'मेगा स्कैम' का आरोप
संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि निजीकरण के पीछे बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार है। पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष आशीष गोयल और निदेशक वित्त निधि नारंग पर निजी घरानों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया गया है। समिति ने दावा किया कि आशीष गोयल ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन के महामंत्री हैं, जिसमें देश के बड़े कॉर्पोरेट घराने शामिल हैं और जिसका मुख्य उद्देश्य बिजली का निजीकरण है। समिति ने मांग की कि इन अधिकारियों द्वारा तैयार निजीकरण दस्तावेज को तुरंत रद्द किया जाए।