ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व वैश्विक वृद्धि के कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वर्षा में कमी आ सकती है

ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व वैश्विक वृद्धि के कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वर्षा में कमी आ सकती है

यह आरेख प्रारंभिक पेलियोजीन की पूर्व-अतितापीय, अतितापीय और पश्च-अतितापीय घटनाओं के दौरान बदलती कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता के कारण वनस्पति के साथ-साथ वर्षा के बदलते पैटर्न को दर्शाता है।

नई दिल्ली: एक नए अध्ययन से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व वैश्विक वृद्धि के कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वर्षा में कमी आ सकती है, जिससे वनस्पति में भी बदलाव हो सकता है। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और अंडमान के सदाबहार वनों के स्थान पर पर्णपाती वन उभर सकते हैं।

इस अध्ययन में, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूशन ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) के शोधकर्ताओं ने ईओसीन थर्मल मैक्सिमम 2 (ईटीएम-2) से प्राप्त जीवाश्म पराग और कार्बन आइसोटोप डेटा का उपयोग किया। यह अवधि लगभग 54 मिलियन वर्ष पहले की वैश्विक वार्मिंग की थी।

ईटीएम-2 के दौरान भारतीय प्लेट, दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी यात्रा के दौरान भूमध्य रेखा के पास रुकी थी, जिससे भारतीय प्लेट एक आदर्श प्राकृतिक प्रयोगशाला बन गई। शोधकर्ताओं ने गुजरात के कच्छ में पनंध्रो लिग्नाइट खदान का चयन किया और वहां से जीवाश्म पराग एकत्र किए।

पराग का विश्लेषण करने पर पाया गया कि जब वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 1000 पीपीएमवी से अधिक थी, तो वर्षा में कमी आई, जिसके कारण पर्णपाती वनों का विस्तार हुआ।

इस अध्ययन के परिणाम जियोसाइंस फ्रंटियर्स जर्नल में प्रकाशित हुए हैं और यह बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण भूमध्यरेखीय/उष्णकटिबंधीय वर्षावनों और जैव विविधता हॉटस्पॉट के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाते हैं। यह अध्ययन CO2 और हाइड्रोलॉजिकल चक्र के बीच संबंधों को समझने में मदद कर सकता है और भविष्य में जैव विविधता हॉटस्पॉट के संरक्षण में सहायता कर सकता है।

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