ग्लेशियर पीछे हटने से लद्दाख के पार्काचिक ग्लेशियर में तीन नई झीलें बन सकती हैं

ग्लेशियर पीछे हटने से लद्दाख के पार्काचिक ग्लेशियर में तीन नई झीलें बन सकती हैं

चित्र 1. 2015, 2017, 2019 और 2021 (दो साल के अंतराल) से फ़ील्ड तस्वीरें (ए से डी), ग्लेशियर के सामने और निचले एब्लेशन ज़ोन का मनोरम दृश्य दिखाती हैं जो तीन भागों में विभाजित था, यानी बाएं, केंद्र और दाएं (फोटो ए में दिखाया गया है)। (ए) यह ढलान टूटने वाले क्षेत्र, पार्श्व मोरेन (हल्के गुलाबी रंग की रेखाएं), 2015 और 2021 के बीच देखे गए परिवर्तनों को इंगित करने वाले लाल तीर और ललाट (पीछे हटने) के लिए संदर्भ बिंदु के रूप में लिए गए जमीनी नियंत्रण बिंदुओं (स्थिर बोल्डर) को दर्शाने वाले पीले वृत्त भी दिखाता है। निगरानी. (ए) ग्लेशियर टर्मिनस के बाईं ओर बनी प्रोग्लेशियल (पीजीएल) झील का स्थान दिखा रहा है।

एक नए अध्ययन से पता चला है कि "सबग्लेशियल ओवर डीपनिंग" के कारण लद्दाख में पार्काचिक ग्लेशियर में अलग-अलग आकार की तीन झीलें बनने की संभावना है। जो ग्लेशियरों द्वारा नष्ट हुए बेसिन और घाटियों की एक विशेषता है ।

इनकी संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए और क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के सबसे प्रत्यक्ष और स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे संकेतक के रूप मे हिमालय के ग्लेशियरों पर एक सदी से भी अधिक समय से क्षेत्र-आधारित जांच से लेकर आज तक के अत्याधुनिक रिमोट सेंसिंग दृष्टिकोण तक कई अध्ययन किए गए हैं। इसके विपरीत, हिमालय के ग्लेशियरों की बर्फ की मोटाई और उसके वितरण को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि, रिमोट सेंसिंग जैसे मौजूदा दृष्टिकोण सीधे ग्लेशियर की मोटाई का अनुमान नहीं लगा सकते हैं लेकिन जमीन भेदने वाले रडार के आधार पर, भारतीय हिमालय में ग्लेशियर की मोटाई पर बहुत कम अध्ययन किए गए हैं।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है, जिसमें पार्कचिक ग्लेशियर, सुरु नदी घाटी, लद्दाख हिमालय, भारत के रूपात्मक और गतिशील परिवर्तनों का वर्णन किया गया है। ये  निष्कर्ष 'एनल्स ऑफ ग्लेशियोलॉजी' पत्रिका में प्रकाशित हुए थे।

डॉ. मनीष मेहता के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने मीडियम-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेजिंग,1971-2021 के बीच कोरोना केएच-4 और सेंटिनल-2ए और 2015 और 2021 के बीच क्षेत्र सर्वेक्षण का उपयोग किया। इसके साथ ही उन्होंने लामिना फ्लो-आधारित हिमालय ग्लेशियर थिकनेस मैपर का उपयोग किया और अभी हाल के मार्जिन उतार-चढ़ाव, सतह बर्फ वेग,बर्फ की मोटाई के परिणाम प्रदान किए। इसके अलावा ग्लेशियर-बेड की अधिक गहराई की भी पहचान की गई। इस रिमोट सेंसिंग डेटा से पता चलता है कि कुल मिलाकर 1971 और 2021 के बीच ग्लेशियर पीछे हटे हैं। रिमोट सेंसिंग डेटा से पता चलता है कि 1971 और 1999 के बीच ग्लेशियर लगभग 2 एमए –1 की औसत से पीछे हटे हैं जबकि 1999 और 2021 के बीच ग्लेशियर के पीछे हटने की औसतन दर लगभग 12 एमए -1 रही। इसी तरह, दिन-प्रतिदिन की निगरानी के माध्यम से दर्ज किए गए क्षेत्र अवलोकनों से पता चलता है कि 2015 से 2021 के बीच 20.5 एमए -1 की उच्च दर से ग्लेशियर पीछे हटा हैं। क्षेत्र और उपग्रह-आधारित दोनों अवलोकनों से संकेत मिलता है कि ग्लेशियर मार्जिन की शांत प्रकृति और प्रोग्लेशियल झील के विकास ने पार्काचिक ग्लेशियर के पीछे हटने में बढ़ोतरी की है।

इसके अलावा, लैंडसैट डेटा सरफेस पर सीओएसआई-कोर का उपयोग करके अनुमानित बर्फ सतह का वेग 1999-2000 में निचले एब्लेशन ज़ोन में लगभग 45 एमए -1 और 2020-2021 में 32 एमए  -1 पाया गया। इसमें 28 प्रतिशत की कमी रही। इसके अलावा, ग्लेशियर की अधिकतम मोटाई संचय क्षेत्र में लगभग 441 मीटर होने का अनुमान है, जबकि ग्लेशियर टोंग के लिए, यह लगभग 44 मीटर है। सिमुलेशन परिणाम बताते हैं कि यदि ग्लेशियर का समान दर से पीछे हटना जारी रहता है, तो सबग्लेशियल के अधिक गहरा होने के कारण अलग-अलग आकार की तीन झीलें बन सकती हैं।

वेब लिंक- https://www.cambridge.org/core/journals/annals-of-glaciology/article/glacier-retreat-dynamics-and-bed-overdeepenings-of-parkachik-glacier-ladakh-himalaya-india/083C086B3C1B37786A73D8AB4ED06400

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