68 हजार बिजली कर्मचारियों पर लटक रही छंटनी की तलवार

निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी, पोस्टर और बैनर के साथ।

उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पावर कारपोरेशन प्रबंधन पर गुमराह करने और झूठी जानकारी फैलाने का आरोप लगाया है। संघर्ष समिति का दावा है कि वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण से करीब 68 हजार कर्मचारी और संविदा कर्मियों की नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है।

संघर्ष समिति का आरोप

संघर्ष समिति ने बताया कि निजीकरण के बाद नियमित कर्मचारी निजी कंपनियों में जाने को तैयार नहीं होंगे और संविदा कर्मियों को निजी कंपनियां रखने के लिए बाध्य नहीं होंगी। इसका सीधा असर कर्मचारियों की पदोन्नति और सेवा शर्तों पर पड़ेगा।

संघर्ष समिति ने यह सवाल भी किया कि भारत सरकार ने सितम्बर 2020 में वितरण कम्पनियों के निजीकरण का ड्राफ्ट बिडिंग डाक्यूमेंट जारी किया था जिसे अभी अन्तिम रूप नहीं दिया गया है तो प्रबन्धन यह बताये कि जब बिडिंग डाक्यूमेंट फाईनल ही नहीं हुआ है तब वाराणसी और आगरा डिस्कॉम का निजीकरण किस बिडिंग डॉक्यूमेंट के आधार पर किया जा रहा है।

प्रबंधन के दावों पर सवाल

पावर कारपोरेशन प्रबंधन का कहना है कि यह केवल निजी भागीदारी है, लेकिन संघर्ष समिति ने इस दावे को खारिज कर दिया। समिति ने नोएडा पावर कंपनी और उड़ीसा व दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियों का उदाहरण देकर कहा कि ऐसी भागीदारी को ही निजीकरण कहा जाता है।

समिति ने कहा कि पावर कारपोरेशन के चेयरमैन कह रहे हैं कि निजीकरण नहीं होगा, निजी भागेदारी होगी जिसमें 51 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी कम्पनी की होगी। निजी कम्पनी का प्रबन्ध निदेशक होगा और चेयरमैन सरकार का कोई अधिकारी होगा। संघर्ष समिति ने सवाल किया कि नोएडा पावर कम्पनी, दिल्ली और उड़ीसा की सभी विद्युत वितरण कम्पनियों में भी निजी क्षेत्र की 51 प्रतिशत और सरकार की 49 प्रतिशत भागेदारी है। नोएडा पावर कम्पनी में भी प्रबन्धन निदेशक निजी कम्पनी का है और चेयरमैन सरकार का अधिकारी होता है।

पावर कारपोरेशन प्रबन्धन यह बताये कि नोएडा पावर कम्पनी निजी कम्पनी नहीं है तो और क्या है? संघर्ष समिति ने कहा कि ऐसा लगता है कि पावर कारपोरेशन प्रबन्धन उन निजी घरानों के प्रवक्ता की तरह काम कर रहा है जिन्हें पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण कम्पनियाँ सौंपने की बात है।

68 हजार कर्मचारियों की नौकरी पर संकट

संघर्ष समिति के अनुसार, दोनों निगमों में 17,330 नियमित कर्मचारी और 50,000 संविदा कर्मी काम कर रहे हैं। निजीकरण के बाद इन पदों के समाप्त होने और छंटनी की संभावना है।संघर्ष समिति ने बताया कि दोनों वितरण निगमों में 07 मुख्य अभियन्ता स्तर-1, 33 मुख्य अभियन्ता स्तर-2, 144 अधीक्षण अभियन्ता, 507 अधिशासी अभियन्ता, 1523 सहायक अभियन्ता और 3677 अवर अभियन्ता एवं लगभग 12000 नियमित कर्मचारी हैं। 

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संघर्ष समिति का संकल्प

संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों ने कहा कि बिजली कर्मी किसी भी कीमत पर निजीकरण स्वीकार नहीं करेंगे। यदि जरूरत पड़ी तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़ने से पीछे नहीं हटेंगे।  संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, शशिकांत श्रीवास्तव, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह आदि मौजूद रहे। 

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