इक्विटी ट्रिक से लूट की तैयारी? 42 जनपदों की विद्युत संपत्तियां खतरे में!
उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम (डिस्कॉम) के निजीकरण के पीछे अब एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसे उत्तर प्रदेश विधुत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने “इक्विटी ट्रिक” का नाम दिया है। इस रणनीति के तहत राज्य की कीमती बिजली परिसंपत्तियों को मात्र कागज़ी गणनाओं के आधार पर निजी घरानों को सौंपने की तैयारी चल रही है।
क्या है इक्विटी ट्रिक
संघर्ष समिति के अनुसार, डिस्कॉम की पूरी परिसंपत्ति जिसमें 42 जिलों की बिजली व्यवस्था, जमीन, ग्रिड, ट्रांसफॉर्मर और बिलिंग सिस्टम जैसी अधोसंरचना शामिल है को "इक्विटी" के रूप में दिखाया गया है। इसके बाद इस इक्विटी को "लॉन्ग टर्म लोन" में बदलने की चाल चली जा रही है। इससे वास्तव में अरबों की संपत्तियां कुछ करोड़ के लोन के बहाने निजी हाथों में पहुंच जाएंगी।
कैसे घटेगा मूल्य
बिजली वितरण कंपनियों की जमीनें, जो हज़ारों करोड़ की वैल्यू रखती हैं, उन्हें सिर्फ ₹1 प्रति वर्ग मीटर की लीज़ पर निजी कंपनियों को सौंपने का प्रस्ताव है। निजी कंपनियां इस लीज़ पर ग्रिड, कार्यालय, स्टाफ क्वार्टर, स्टेशन आदि को उपयोग में लेंगी बिना किसी असली निवेश के। ये कंपनियां बाद में सरकारी लोन या सब्सिडी के माध्यम से ही वह राशि लौटाएंगी जिससे उन्होंने कथित तौर पर यह इक्विटी खरीदी।
वैश्विक संदर्भ में "इक्विटी ट्रिक"
रूस Loans-for-Shares घोटाला (1995)
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में आर्थिक संकट से जूझती सरकार ने “Loans-for-Shares” योजना लागू की।इसके तहत देश की सबसे बड़ी खनिज और तेल कंपनियों की हिस्सेदारी कुछ चुनिंदा व्यापारियों (अब ओलिगार्च) को बाजार मूल्य से 10-30% कीमत पर सौंप दी गई।यह सौदेबाज़ी इतनी गुप्त और पक्षपाती थी कि इसे आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा सार्वजनिक संसाधन घोटाला माना गया।
स्रोत:Harvard Kennedy School,The Guardian (Link),“The Oligarchs” by David E. Hoffman
फिलीपींस क्रोनी पूंजीवाद और Meralco मामला
राष्ट्रपति फ़र्डिनैंड मारकोस के शासनकाल में सरकारी संपत्तियाँ उनके करीबी उद्योगपतियों को सौंप दी गईं।“Meralco” (Manila Electric Company) का उदाहरण बेहद चर्चित है, जिसे नाममात्र के मूल्य पर सौंपा गया और बाद में भ्रष्टाचार का मामला बना।बाद में 1986 में “पीपुल पावर क्रांति” के बाद इसे “क्रोनी कैपिटलिज्म” का प्रतीक माना गया।
स्रोत:Transparency International, Philippine Commission on Good Government
क्या यूपी में हो रही है वैश्विक ‘इक्विटी ट्रिक’ की पुनरावृत्ति
उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम (डिस्कॉम) के निजीकरण की प्रक्रिया अब सिर्फ एक नीतिगत निर्णय नहीं बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखे गए धोखाधड़ी मॉडल से मिलती-जुलती चाल मानी जा रही है। इसे “इक्विटी ट्रिक” कहा जा रहा है एक ऐसी रणनीति जिसमें सरकारी परिसंपत्तियों को नाममात्र के मूल्य पर निजी घरानों को सौंप दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश में यदि “इक्विटी” को लॉन्ग टर्म लोन में बदलकर कॉरपोरेट कंपनियों को 1 रुपये प्रति वर्ग मीटर की लीज़ पर भूमि दी जाती है, और वे बाद में इस आधार पर 66,000 करोड़ से अधिक बकाया वसूली करने लगें, तो यह मॉडल रूसी ओलिगार्च मॉडल की पुनरावृत्ति है। क्रोनी कैपिटलिज्म का देसी संस्करण हो सकता है और इसका नतीजा जनता की परिसंपत्ति पर केंद्रित कॉरपोरेट नियंत्रण बनता है।
किसे मिलेगा फायदा
संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि यह पूरा खेल पहले से तय निजी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन कंपनियों की नीयत उन ₹66,000 करोड़ के बिजली बकायों पर है, जो उपभोक्ताओं से वसूल किए जाने हैं। यानी परिसंपत्तियों के साथ-साथ आने वाली आमदनी भी निजी कंपनियों के खाते में जाएगी।
जनहित के विरुद्ध कदम
इस प्रक्रिया को लेकर संघर्ष समिति ने कहा है कि यह पारदर्शिता के सभी मानकों का उल्लंघन है। बिना जनसुनवाई, बिना सार्वजनिक दस्तावेज के डिस्कॉम की बोली की तैयारी की जा रही है। ये परिसंपत्तियां जनता की हैं, और उनका इस तरह "बिक्री" जनहित के विरुद्ध और संविधान के मूल भावना के खिलाफ है।
समिति की मांग
संघर्ष समिति और उससे जुड़े किसान, उपभोक्ता व कर्मचारी संगठनों ने सीबीआई जांच की मांग करते हुए मुख्यमंत्री से अपील की है कि इस “इक्विटी आधारित लूट” पर तत्काल रोक लगाई जाए और पूरी प्रक्रिया को सार्वजनिक मंच पर लाकर उसकी समीक्षा कराई जाए।
कुल मिलाकर "इक्विटी ट्रिक" कोई नई रणनीति नहीं है। यह दुनिया के कई देशों में लोकतांत्रिक संस्थानों, संसाधनों और नीतियों को चुनिंदा निजी हाथों में सौंपने के लिए इस्तेमाल की गई है। उत्तर प्रदेश में इसे रोका जाना केवल राज्य नहीं, देश के जनहित और लोकतंत्र की रक्षा का सवाल बन चुका है।