"जेल भेजो!" फॉर्मेट से गरमाई बिजली राजनीति, संघर्ष समिति की ललकार
यह फॉर्मेट अब सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक आंदोलन का ‘ट्रिगर’ बन गया है।
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के चेयरमैन डॉ. आशीष गोयल द्वारा एक मीटिंग में कथित तौर पर बिजलीकर्मियों को जेल भेजने के बयान के बाद हलचल है। अब कई मंडलों में अधिकारियों द्वारा एक ऐसा फॉर्मेट जारी किया है, जिसने राज्य की बिजली व्यवस्था, कर्मचारियों और औद्योगिक शांति तीनों को संभावित गहरे संकट में डाल दिया है। यह फॉर्मेट उन बिजली कर्मचारियों की सूची तैयार करने के लिए जारी किया गया है जो ‘जेल जाने को तैयार हैं।’
संघर्ष समिति ने इस कदम को ‘आपातकालीन तानाशाही का प्रतीक’ बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है।कहा है कि कर्मचारियों में उबाल है और हर ओर एक ही आवाज गूंज रही है "अगर गिरफ्तारी होनी है, तो सबसे पहले मैं"।
क्या है ये विवादित ‘जेल फॉर्मेट’
सभी परियोजनाओं और जिलों में एक लिखित फॉर्मेट भेजा गया है, जिसमें अधिकारियों से कहा गया है कि जो कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं और जेल जाने को तैयार हैं, उनकी सूची 26 जून तक भेजें।सूत्रों के अनुसार, इस फॉर्मेट में नाम, पद, डिपार्टमेंट, कार्यस्थल जैसी सूचनाओं के साथ जेल भेजे जाने की ‘स्वेच्छा’ दर्ज करनी है।संघर्ष समिति का कहना है कि यह कर्मचारी आंदोलन को दबाने और डराने की साज़िश है।
संघर्ष समिति का सीधा आरोप
संघर्ष समिति ने कहा “यह आदेश सिर्फ तानाशाही नहीं, बिजली आपूर्ति को बर्बाद करने की योजना है। चेयरमैन उकसाकर औद्योगिक अशांति फैला रहे हैं।”उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह फॉर्मेट वापस नहीं लिया गया, तो पूरे प्रदेश में जेल भरो आंदोलन शुरू होगा। 27 जून को ‘चेतावनी दिवस’ के तहत सभी जिलों में प्रदर्शन किया जाएगा। मामले को राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन और मानवाधिकार मंच पर उठाया जाएगा
मांगें और संभावित परिणाम
संघर्ष समिति का दावा है कि बिजली कर्मचारी बीते 211 दिनों से निजीकरण के खिलाफ शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हैं, और बावजूद इसके महाकुंभ और भीषण गर्मी के दौरान बिजली व्यवस्था को सुचारू बनाए रखा है। ऐसे में चेयरमैन की यह कार्रवाई आंदोलन को कुचलने और कर्मचारियों को भड़काने का प्रयास है, जिससे व्यवस्था खुद ब खुद लड़खड़ा जाए।
संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप की मांग करते हुए स्पष्ट किया कि यह फॉर्मेट औद्योगिक स्वतंत्रता पर हमला है। इससे प्रदेश की बिजली व्यवस्था गड़बड़ा सकती है। चेयरमैन को तत्काल हटाया जाए और निजीकरण पर खुली बहस हो।