पार्टिकुलेट उत्सर्जन की मात्रा को करना होगा नियंत्रित

नई इकाइयों के ईएसपी के लिए मानक हुए कड़े

पार्टिकुलेट उत्सर्जन की मात्रा को करना होगा नियंत्रित

सोनभद्र : लगभग एक दशक पहले प्रदेश की सबसे पुरानी 50 मेगावाट वाली ओबरा तापीय परियोजना की विद्युत इकाइयों को इसलिए हमेशा के लिए बंद करना पड़ा था क्यूंकि उनसे पार्टिकुलेट उत्सर्जन की मात्रा कई सौ गुना बढ़ गई थी। उसके कुछ वर्ष बाद सबसे पुरानी  100 मेगावाट वाली दो इकाइयों को भी अत्याधिक प्रदुषण के कारण बंद कर दिया गया था। ओबरा की ये इकाइयां प्रदूषण के खतरनाक स्तर पहुंचने के कारण चिंताजनक हो गई थी ।इन इकाइयों की बंदी के कारण उत्पादन निगम की काफी किरकिरी भी होती रही ।पिछले एक दशक के दौरान उत्पादन निगम की आधा दर्जन इकाइयां बंद कर दी गयी ।खासकर पर्यावरण संरक्षण को लेकर तय किये गए कड़े मानकों की वजह से अभी भी उत्पादन निगम की कई इकाइयों पर तलवार लटकी हुयी है ।

ओबरा की 200 मेगावाट वाली इकाइयां इन्ही में शामिल हैं ।ये सभी इकाइयां पिछले चार दशकों से पूरे प्रदेश को प्रकाशमान करने के साथ उधोगों की  साबित होती रही ।लेकिन बिगड़ते  पर्यावरण ने कोयला आधारित इकाइयों के लिए स्थिति काफी कठिन कर दी है ।कोयले में फ्लोराइड जैसे भारी तत्व नाइट्रेट व सल्फेट्स जैसी गैसीय तत्व काफी मात्रा में पाये जाते है जो कोयला जलाने के साथ लगातार हवा में मिल रहे हैं।कोयला जलने के बाद 28 से 40 फीसदी फ्लाई ऐश निकलती है।जिसकी रोकथाम के लिए ऐसे मानक तय किये गए हैं जिनका पालन करने के लिए नई तकनीकि  का प्रयोग करना पड़ रहा है ।खासकर ओबरा तापीय परियोजना की विभिन्न इकाइयों की बंदी में  इलेक्‍ट्रोस्‍टेटिक प्रीसिपिटेटर्स (ईएसपी) की खराबी की सबसे बड़ी भूमिका रही है।

बंद हुयी इन इकाइयों के ईएसपी पूरी तरह खराब हो गए थे।जिसके कारण इनके चिमनियों से 6500 मिलीग्राम घनमीटर तक फ्लाई ऐश निकलने लगी थी।जबकि उन्हें अधिकतम 250 मिलीग्राम घनमीटर के लिए डिजाइन किया गया था।विदित हो कि प्रदेश में सबसे ज्यादा वनों वाले जनपद के पर्यावरण से बड़े भूभाग पर असर पड़ता है। इसलिए सोनभद्र सिंगरौली क्षेत्र में स्थापित होने वाली नई तापीय इकाइयों के लिए कड़े मानक तय किये गए हैं ।

ईएसपी को लेकर मानक हुए कड़े


नई परियोजनाओं को केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के कड़े मापदंडों से गुजरना होगा । वर्तमान में निर्माणाधीन ओबरा सी के साथ ही उत्पादन निगम की अन्य निर्माणाधीन इकाइयों के पार्टिकुलेट उत्‍सर्जन की मात्रा को 30 एमजी/एनएम3 या मंत्रालय द्वारा अधिसूचित मात्रा में से जो कम हो, से ज्‍यादा न होने देने के लिये हाई एफिशियेंसी इलेक्‍ट्रोस्‍टेटिक प्रीसिपिटेटर्स (ईएसपी) स्‍थापित करने होंगे ।वर्तमान में ओबरा सी और जवाहर परियोजना के लिए निर्माण की जा रही चिमनियों में नए मानकों का ध्यान देना पड़ रहा है।दोनों परियोजनाओं में 275 मीटर की चिमनी के साथ हाई एफिशियेंसी ईएसपी का निर्माण किया जा रहा है।

इसके अलावा नए मानकों के अनुसार धूल निकास प्रणाली, जैसे कि साइक्‍लोन्‍स,बैग फिल्‍टर तथा धूल वाले क्षेत्रों जैसे कि कोल हैंडलिंग और राख हैंडलिंग, स्‍थानान्‍तरण क्षेत्रों तथा अन्‍य खतरनाक धूल वाले क्षेत्रों में जल के छिड़काव सम्‍बन्‍धी प्रणाली विकसित करनी होगी। साथ ही कीचड़ के निस्‍तारण के लिये पर्यावरण के अनुकूल प्रणाली का प्रबन्‍ध भी करना होगा। आयातित कोयले का सल्‍फर एवं राख तत्‍व क्रमश: 0.6 प्रतिशत एवं 12 प्रतिशत से ज्‍यादा नहीं होगा। इसके अतिरिक्‍त घरेलू कोयले का भी सल्‍फर एवं राख तत्‍व क्रमश: 0.4 प्रतिशत एवं 32 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिये। यदि किसी समय कोयले की गुणवत्‍ता में कोई परिवर्तन होता है तो पर्यावरणीय स्‍वीकृति में समुचित संशोधनों के लिये मंत्रालय को नया संदर्भ देना होगा।

 
 

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