सागौन के पत्तों से बनेगा लेज़र सुरक्षा कवच

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा आंखों और उपकरणों को बचाने वाला प्राकृतिक समाधान

सागौन की पत्तियों से बनी लेज़र सुरक्षा डाई

क्या आपने कभी सोचा है कि जो सागौन के पत्ते खेतों में बेकार समझकर फेंक दिए जाते हैं, वे किसी दिन मानव आंखों और हाई-पावर लेजर उपकरणों को बचा सकते हैं? भारत के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) के वैज्ञानिकों ने ऐसा ही एक अनोखा और पर्यावरण के अनुकूल तरीका खोजा है।

कचरे से खोजा खजाना

आमतौर पर फेंक दी जाने वाली सागौन की पत्तियों में छिपा है एक खास रासायनिक तत्व – एंथोसायनिन, जो इन्हें लाल-भूरा रंग देता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह रंग प्राकृतिक रूप से उन विशेष गुणों से भरपूर है, जो तेज लेज़र लाइट को रोकने और नाजुक ऑप्टिकल उपकरणों व आंखों की सुरक्षा में मदद कर सकते हैं।

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चित्र 1: वह प्रक्रिया जिसके माध्यम से सागौन का पत्ता निकालने को नॉनलाइनियर ऑप्टिकल गुणों का अध्ययन करने के लिए तैयार किया जाता है।

 

कैसे काम करता है यह अर्क

वैज्ञानिकों ने इन पत्तियों को सुखाकर पाउडर बनाया, उसे विशेष विलायकों में भिगोया, फिर उसे छाना और शोधित किया। परिणामस्वरूप, एक सुंदर लाल-भूरा तरल डाई मिला, जिसने हरे लेजर लाइट को दो स्थितियों में रोकने की क्षमता दिखाई है। 1.लगातार चलने वाली लेज़र (Continuous wave)
2.पल्स में चलने वाली लेज़र (Pulsed laser)

इस डाई की सबसे खास बात है इसका रिवर्स सैचुरेबल अब्जॉर्प्शन (RSA) — यानी जैसे-जैसे प्रकाश की तीव्रता बढ़ेगी, यह डाई उसे उतना ही अधिक सोख लेगी। यह व्यवहार लेज़र सुरक्षा चश्मों और कोटिंग्स के लिए एकदम उपयुक्त है।

प्राकृतिक विकल्प, बेहतर भविष्य

आज जहां ग्रेफीन, फुलरीन या मेटल नैनो पार्टिकल्स जैसे महंगे और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सिंथेटिक विकल्पों का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं यह सागौन की पत्तियों से बना अर्क एक सस्ता, बायोडिग्रेडेबल और टिकाऊ विकल्प बनकर उभरा है।

भविष्य की संभावनाएं

इस शोध का उपयोग भविष्य में लेजर सुरक्षा चश्मे,ऑप्टिकल सेंसर के सुरक्षात्मक कवच, और लेज़र-प्रतिरोधी कोटिंग्स
जैसे उपकरणों में किया जा सकता है।

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चित्र:2 संतृप्त अवशोषक (एसए) के मुकाबले रिवर्स संतृप्त अवशोषक (आरएसए)

 

शोधकर्ता की बात

वैज्ञानिक बेरिल सी, जो RRI में महिला वैज्ञानिक हैं, ने कहा, “हमने सागौन की पत्तियों में मौजूद एंथोसायनिन को एक नॉन-विषैला, जैव-निम्नीकरणीय और पर्यावरण-अनुकूल समाधान के रूप में देखा है। यह प्रकृति के साथ तकनीक के मेल का शानदार उदाहरण है।”

भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज न केवल हरित तकनीक (Green Technology) की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि यह दिखाती है कि प्राकृतिक संसाधनों से भी हम आधुनिक विज्ञान की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। सागौन की ये पत्तियां अब सिर्फ खेतों का कचरा नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा तकनीकों की नींव बन सकती हैं।

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