फ्लाई ऐश के कारण बढ़ रहा संकट
तमाम प्रयासों के बावजूद नही बढ़ रही खपत
फोटो-ओबरा परियोजना के चकाड़ी के ऐश डैम से गुजरते मवेशी
सोनभद्र -पिछले कुछ माह के दौरान तापीय परियोजनाओं के ऐश डैम के टूटने सहित हो रहे रिसाव ने बड़ी आबादी के लिए चिंता पैदा की है । ऐश प्रबन्धन में कोताई बरतने में आधा दर्जन परियोजनाओं के उपर एनजीटी ने जुर्माना भी लगाया गया है । ऐसे में बढ़ते ऐश के भण्डार को देखते हुए फ्लाई ऐश के उपयोग में वृद्धि आवश्यक हो गया है।खासकर सोनभद्र-सिंगरौली औधोगिक क्षेत्र में प्रतिदिन पौने तीन लाख टन से ज्यादा कोयले की खपत के कारण फ्लाई ऐश का सबसे बड़ा ढेर यह क्षेत्र बनते जा रहा है। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा उ.प्र.प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देश पर उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम अपनी तापीय परियोजनाओं से फ्लाई ऐश निकासी के लिए प्रयासरत है।लेकिन इसमें अपेक्षित सफलता नही मिल पा रही है।
तमाम परियोजनाओं से निकल रहे फ्लाई ऐश का पांच फीसदी भी उपयोग नही हो पा रहा है वह भी निशुल्क मिलने पर।कोयला जलने के बाद 28 से 40 फीसदी फ्लाई ऐश निकलती है जिसमें काफी हिस्सा ऐश डैम या अन्य जलस्रोतों में जाता है।देश में अभी फ्लाई ऐश को कूड़ा ही समझा जाता है। पर्यावरण मंत्रालय फ्लाई ऐश से निपटने के लिए कानूनी प्रतिबंध कोई दो दशक पहले लगाने शुरू किए थे परंतु जमीनी सच्चाई खतरनाक संकेत दे रहे हैं।
उत्पादन निगम उपयोग बढाने के लिए प्रयासरत
उत्पादन निगम फ्लाई ऐश का उपयोग बढाने के लिए लगातार प्रयास में जुटा हुआ है।पूर्व में उत्पादन निगम ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण(एनएचआई) के साथ करार किया था।एनएचआई से करार के बाद ओबरा तापीय परियोजना के ऐश पांड में मौजूद राख का राष्ट्रीय राजमार्ग की परियोजनाओं में प्रयोग होना था,लेकिन राख परिवहन पर होने वाले व्यय को लेकर मामला अटका हुआ है।इसके तहत एनएच 56 एवं 233 के वाराणसी सेक्शन के अंतर्गत आने वाले हिस्सों के लिए फ्लाई ऐश की आपूर्ति की जानी थी।उत्पादन निगम ने एक हजार मेगावाट क्षमता के अनपरा डी के राख साइलो से निष्कासित 3500 एमटी प्रतिदिन फ्लाई ऐश के उपयोग के लिए उपयोगकर्ताओं को आमंत्रित किया है।इनमे सीमेंट,ईट,ब्लाक्स,एग्रीगेट सहित तमाम निर्माताओं को शामिल किया गया है।
खपत बढ़ाने के लिए ही सोनभद्र जिला प्रशासन को सीएसआर योजना के अंतर्गत 2 नग फ्लाई एस आधारित ईट बनाने की मशीन प्रदान की गई है । जिसमें प्रत्येक मशीन की क्षमता 1600 ईट प्रति घंटा निर्माण करने की है । मशीनों की कुल लागत रू 36 लाख है । मशीनों से ईटों के निर्माण में 60 से 70% फ्लाई एस का प्रयोग भी संभव होगा जो पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है ।हालाकि यह फ्लाई ऐश के मौजूद भंडार के हिसाब से काफी कम है।
इ.सीपी मिश्रा, मुख्य महाप्रबंधक,ओबरा परियोजना - हमारा पूर्व से प्रयास रहा है कि फ्लाई ऐश का उपयोग ज्यादा से ज्यादा हो लेकिन इसके बावजूद अपेक्षित मात्रा में अभी भी फ्लाई ऐश के उपयोगकर्ता नही मिल पा रहे हैं।सीमेंट कम्पनी अल्ट्राटेक से ड्राई फ्लाई ऐश का अनुबंध है लेकिन उनकी उपयोग क्षमता अपेक्षित नही है।