बिजली क्षेत्र के सरकारी विज्ञापन ने नई बहस को दिया जन्म
क्या यह वाकई सेवा सुधार है या एक सुनियोजित सम्पत्ति हस्तांतरण?
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में प्रकाशित “अब हर घर रोशन : उत्तर प्रदेश” शीर्षक वाले विज्ञापन में जहां सरकार ने वर्ष 2017 से अब तक बिजली क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों का बखान किया है, वहीं उसी पृष्ठ पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को होने वाले तथाकथित “विशेष लाभों” का उल्लेख भी किया गया है। यह विरोधाभासी प्रस्तुति अब सरकार की किरकिरी करा रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किए गए विज्ञापन में यह दावा किया गया है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को "सेवा की गुणवत्ता", "विश्वासनीयता", "24x7 कॉल सेंटर", "डिजिटल सेवाएं" और "शीघ्र शिकायत समाधान" जैसे विशेष लाभ मिलेंगे।
हालांकि, इन दावों की सच्चाई पर जब गहराई से नज़र डाली जाती है, तो यह स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकतर सेवाएं सरकारी सेक्टर में पहले से ही संचालित थीं या थोड़े से प्रबंधनिक सुधारों के साथ बेहतर बनाई जा सकती थीं।
इस विज्ञापन में एक ओर तो पिछले सात वर्षों (2017-2024) की सरकारी व्यवस्था के ज़रिए हुई बिजली सुधारों को गिनाया गया, वहीं दूसरी ओर उसी पृष्ठ पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण से होने वाले "संभावित लाभ" बताए गए। सवाल यह उठता है कि जब सरकारी तंत्र ने इतना बेहतरीन प्रदर्शन किया है, तो फिर निजीकरण क्यों?
पिछले 7 वर्षों में क्या हुआ है
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 175.15 लाख नए विद्युत संयोजन दिए गए। 2.49 लाख ट्रांसफॉर्मर बदले या लगाए गए। 747 नए उपकेन्द्र (सब-स्टेशन) बनाए गए। जनपद मुख्यालयों को 24 घंटे, तहसीलों को 21.5 घंटे, और ग्रामीण क्षेत्रों को 18 घंटे बिजली आपूर्ति दी जा रही है। साथ ही, राज्य सरकार ने 288 मेगावॉट से अधिक की नई परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिसमें सोलर, हाइड्रो, और कोल आधारित बिजली उत्पादन शामिल है।
यह सारी उपलब्धियाँ सरकारी वितरण निगमों और उनके कर्मचारियों के माध्यम से आयी, जिन्होंने लॉकडाउन, गर्मी, तूफान, आंधी में भी बिजली व्यवस्था बनाए रखी।
तो फिर निजीकरण की ज़रूरत क्यों
विज्ञापन में दावा किया गया कि निजीकरण से उपभोक्ताओं को ये लाभ मिलेंगे:
1.सेवा की गुणवत्ता, 2.विश्वासनीयता, 3.दक्षता, 4.कृषि उत्पादकता 5.डिजिटल सेवा 6.शीघ्र शिकायत समाधान, 7.उपभोक्ताओं की संतुष्टि, 8. ग्रामीणों की आय, 9. ग्रामीण क्षेत्रों में औधोगिक विकास, 10. बेहतर बुनियादी ढांचा, 11.स्पष्ट और सटीक बिल, 12. 24 घंटे बिजली आपूर्ति, 13.कम भ्रष्टाचार और बिचौलियों से मुक्ति
सरकार द्वारा जारी इन दावों की बिंदुआर स्थिति से कई विरोधाभासी स्थिति सामने आती है।
सेवा की गुणवत्ता (Service Quality)
विज्ञापन में दावा है कि निजी कंपनियाँ बेहतर सेवा गुणवत्ता देंगी और समय पर बिजली, लाइन सुधार, फॉल्ट का त्वरित समाधान करेंगी। जबकि सरकारी डिस्कॉम (पूर्वांचल/दक्षिणांचल) पहले से ही IVRS आधारित फॉल्ट रजिस्ट्रेशन, 1912 कॉल सेंटर, और विद्युत मोबाइल ऐप के ज़रिए त्वरित सेवा दे रहे हैं। महाकुंभ, चुनाव, आपातकालीन मौसम स्थितियों में सेवा सतत रही, यही सेवा गुणवत्ता नहीं तो क्या है? सरकारी क्षमता पहले से सिद्ध है, बस नियोजन और संसाधन निवेश चाहिए।
विश्वासनीयता (Reliability)
विज्ञापन में दावा है कि निजीकरण से बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता बढ़ेगी।जबकि विज्ञापन में ही 2017–24 के दौरान 24 घंटे बिजली आपूर्ति, फीडर अपग्रेड, और 10% ट्रांसमिशन लॉस घटने की बात सरकारी प्रयासों के माध्यम से बताई गई है। यदि सरकारी सिस्टम ने यह उपलब्धियाँ दीं, तो अब उसे ही अविश्वसनीय बताना विरोधाभासी है।
दक्षता (Efficiency)
विज्ञापन में दावा है कि निजी कंपनियाँ कम लागत में बेहतर काम करेंगी। जबकि दक्षता केवल निजीकरण से नहीं आती। IT इंटीग्रेशन, डिजिटल मैपिंग, ERP जैसे सरकारी नवाचारों से भी आती है। UPPCL पहले से SAP और ऑनलाइन बिलिंग सिस्टम लागू कर चुका है। दक्षता के मायने तकनीक और प्रबंधन के सामजस्य में है न कि केवल निजी लेबल पर।
कृषि उत्पादकता में वृद्धि
विज्ञापन में दावा है कि निजीकरण के बाद किसानों को बेहतर बिजली मिलेगी, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी। जबकि किसानों को 24 घंटे बिजली देना किसी भी निजी कंपनी का प्राथमिक लक्ष्य नहीं होगा, क्योंकि यह लाभ-आधारित मॉडल में लाभहीन वर्ग है। सरकार कृषि फीडर को अलग कर पहले ही सस्ती बिजली देने के उपाय कर रही है। निजी कंपनी लागत-वसूली के लिए सब्सिडी खत्म कर सकती है, जिससे किसान और ज़्यादा दबाव में आएंगे।
डिजिटल सेवाएं और पारदर्शिता
विज्ञापन में दावा है कि डिजिटल सेवाएं बढ़ेंगी जैसे बिलिंग, पेमेंट, ट्रैकिंग।जबकि UPPCL का 'UP Bijli App', पोर्टल, 1912 हेल्पलाइन, SMS अलर्ट पहले से उपलब्ध हैं। बिल डाउनलोड, मीटर रीडिंग ट्रैकिंग और कंप्लेंट मॉनिटरिंग पहले से डिजिटल है। सरकारी सिस्टम में डिजिटल सुधार हो रहे हैं बस उसे निजीकरण से जोड़ना प्रचार है।
शीघ्र शिकायत समाधान
विज्ञापन में दावा है कि निजी कंपनियाँ उपभोक्ता शिकायतों को जल्दी निपटाएंगी। जबकि शिकायत समाधान के लिए IVRS, WhatsApp, Twitter समाधान सेल, JE स्तर की ज़िम्मेदारी आदि पहले से मौजूद हैं। समस्या समाधान का असली मुद्दा मैनपावर की कमी और संसाधनों का अभाव है, न कि स्वामित्व।
स्पष्ट और सटीक बिल
विज्ञापन में दावा है कि सटीक मीटर रीडिंग और बिलिंग का वादा। जबकि UPPCL में स्मार्ट मीटरिंग, डोर-टू-डोर रीडिंग ऐप, और ई-बिलिंग पहले से चल रहे हैं। समस्या बिलिंग में नहीं, मीटर खराबी और सर्वे की लापरवाही में है, जिसे तकनीकी अपग्रेड से सुधारा जा सकता है। इसके लिए निजीकरण की ज़रूरत नहीं।
24 घंटे बिजली आपूर्ति
विज्ञापन में दावा है कि निजीकरण के बाद बिना कटौती 24x7 बिजली। जबकि उत्तर प्रदेश के अधिकतर शहर और कस्बे पहले से 22–24 घंटे बिजली पा रहे हैं जो सरकारी निवेश का ही परिणाम है। गांवों को भी 18–20 घंटे आपूर्ति हो रही है।ऐसे में अगर निजीकरण के बाद यदि निजी कंपनी घाटे वाले ग्रामीण क्षेत्र में बिजली कम करने लगे तो क्या होगा?
कम भ्रष्टाचार और बिचौलियों से मुक्ति
विज्ञापन में दावा है कि निजी कंपनियाँ बिचौलियों को खत्म करेंगी। जबकि बिचौलियों की समस्या कर्मचारियों में नहीं, नीति और नियंत्रण व्यवस्था में है। सख्त जवाबदेही कानून और शिकायत पोर्टल से इसे खत्म किया जा सकता है। निजी कंपनियाँ अक्सर उप-ठेकेदारों के ज़रिए काम करती हैं।जहाँ बिचौलियों की बजाय नया कॉरपोरेट बिचौलिया आ जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिक विकास और आय में वृद्धि
विज्ञापन में दावा है कि निजीकरण से ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग लगेंगे और लोगों की आय बढ़ेगी। जबकि औद्योगिक विकास इन्फ्रास्ट्रक्चर, नीति और निवेश से होता है केवल बिजली से नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ही सरकारी योजनाओं से MSMEs और कृषि उद्योग उभर रहे हैं। निजी कंपनियाँ केवल हाई-डिमांड इलाकों में सेवा देना पसंद करती हैं। ग्रामीण क्षेत्र अक्सर उनके लिए प्राथमिकता में नहीं होते।
संघर्ष समिति ने किया तीखा सवाल
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने इस विज्ञापन को “नीतिगत भ्रम” करार देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि वे निजीकरण पर अंतिम निर्णय से पहले संघर्ष समिति को अपना पक्ष रखने का अवसर दें। समिति ने कहा कि विज्ञापन में सात वर्षों की उपलब्धियों को दर्शाने के बाद भी निजीकरण को ज़रूरी बताना सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर खुद सरकार का ही अविश्वास दिखाता है।
विश्वसनीयता खो चुका प्रबंधन ही चला रहा है निजीकरण प्रक्रिया
विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि निजीकरण से सेवा की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और डिजिटल सेवाएं बढ़ेंगी। संघर्ष समिति ने इसे सरकार का आत्मविरोधी वक्तव्य बताया है और कहा कि जिस प्रबंधन की विश्वसनीयता को लेकर विज्ञापन में ही शंका जताई जा रही है, वही निजीकरण की पूरी प्रक्रिया चला रहा है।
सरकार से सीधी अपील
संघर्ष समिति ने दो टूक कहा है कि निजीकरण से करोड़ों की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव बेचे जाने का खतरा है। मुख्यमंत्री से अपील की गई है कि वे भ्रष्टाचार पर अपनी “ज़ीरो टॉलरेंस नीति” का पालन करते हुए निजीकरण की इस प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोकें।