डैम दुर्घटनाएँ और बढ़ते जलवायु खतरे

"Derna Disaster: एक हादसा जिसने Dam Safety और Climate Change की नींव हिला दी"

Dam Disaster
सोर्स - theguardian.com

"लिबिया का डर्ना… एक ऐसा शहर जो रातों-रात मौत और मलबे में बदल गया। दो डैम टूटे और कुछ घंटों की बारिश ने हज़ारों जिंदगियाँ छीन लीं। यह सिर्फ एक स्थानीय त्रासदी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक Global Wake-Up Call है। Derna Dam Disaster ने साफ कर दिया कि Climate Change और पुराना Infrastructure मिलकर किसी भी समय विनाश ला सकते हैं। आज सवाल यह है कि क्या हमारे डैम वाकई सुरक्षित हैं? क्या जलवायु परिवर्तन की मार से बचने की कोई तैयारी है? WaterPower Magazine की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के आधे से ज्यादा डैम 50 साल पुराने हैं, और उन पर बढ़ते Floods, Extreme Rainfall और ग्लेशियर पिघलने का दबाव है। डर्ना हादसा हमें चेतावनी देता है कि अगर समय रहते हम Dam Safety और Climate Resilience पर ध्यान नहीं देंगे, तो अगली त्रासदी कहीं भी, कभी भी हो सकती है।"

दुनिया भर में डैम (बांध) केवल ऊर्जा उत्पादन का साधन नहीं हैं, बल्कि कृषि सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण और जलापूर्ति की रीढ़ भी हैं। लेकिन हाल के वर्षों में आई डैम दुर्घटनाओं ने न केवल स्थानीय आबादी को गहरा झटका दिया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन और डैम सुरक्षा को लेकर नई चिंताएँ खड़ी कर दी हैं। हाल ही में हुई डैम दुर्घटना ने यह साफ़ कर दिया कि बदलते मौसम पैटर्न और पुरानी होती संरचनाएँ अब विकास की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन चुकी हैं।

1.हालिया डैम दुर्घटना और उसका प्रभाव

हाल की डैम त्रासदी (जिस पर WaterPower Magazine ने विश्लेषण प्रस्तुत किया) ने हज़ारों लोगों की जान ली और लाखों को विस्थापित किया। यह हादसा केवल एक तकनीकी विफलता नहीं था, बल्कि जलवायु आपदा और सुरक्षा लापरवाही का मिश्रित परिणाम था।

कई इलाकों में लगातार भारी बारिश और बाढ़ के दबाव से बांध टूट गया। स्थानीय प्रशासन समय रहते चेतावनी देने या आबादी को सुरक्षित निकालने में विफल रहा।परिणामस्वरूप जनहानि, संपत्ति का विनाश और दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक संकट पैदा हुआ।

यह घटना यह भी दिखाती है कि जब प्राकृतिक आपदा और कमजोर संरचना एक साथ मिलते हैं, तो परिणाम अत्यंत विनाशकारी हो सकते हैं।

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2.जलवायु परिवर्तन और डैम जोखिम

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आज डैम सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।

चरम वर्षा (Extreme Rainfall)
ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडल में नमी बढ़ रही है। इससे अचानक और रिकॉर्ड स्तर की बारिश हो रही है। कई डैम ऐसी तीव्र वर्षा झेलने के लिए डिज़ाइन ही नहीं किए गए थे।

बाढ़ और फ्लैश फ्लड्स
तेज़ी से पिघलते ग्लेशियर और अनियमित मानसून पैटर्न डैम पर दबाव बढ़ा रहे हैं। यह विशेषकर हिमालयी क्षेत्र और अफ्रीका में गंभीर खतरा है।

सूखा और पानी की अनियमितता
कभी पानी का अत्यधिक दबाव, तो कभी पानी की भारी कमी, यह दोनों परिस्थितियाँ डैम की दीर्घकालिक स्थिरता को प्रभावित करती हैं।

3.पुरानी होती संरचनाएँ

दुनिया में लगभग 58,000 बड़े डैम हैं। इनमें से करीब 50% 50 वर्ष से अधिक पुराने हैं। कई डैमों को उस समय बनाया गया था जब जलवायु परिस्थितियाँ अलग थीं। रखरखाव और सुरक्षा उन्नयन (upgradation) पर पर्याप्त निवेश नहीं किया गया।विकसित देशों में भी कई बांध अपनी तकनीकी आयु (Design Life) पार कर चुके हैं। इसका मतलब है कि अब हमें केवल नए डैम बनाने की नहीं, बल्कि पुराने डैमों को सुरक्षित बनाने की भी चुनौती है।

4.सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

डैम दुर्घटनाएँ केवल जान-माल की हानि तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर छोड़ती हैं।

मानवीय संकट: विस्थापन, बेघर होना और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ।

आर्थिक नुकसान: कृषि, उद्योग और ऊर्जा उत्पादन पर सीधा प्रभाव।

विश्वास की कमी: सरकार और प्रशासन पर जनता का भरोसा हिल जाता है।

लंबी अवधि की चुनौतियाँ: बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण, राहत और पुनर्वास में सालों लग जाते हैं।

5. डैम सुरक्षा के लिए वैश्विक चेतावनी

हालिया हादसे के बाद विशेषज्ञों ने साफ़ कहा है कि यह घटना केवल “स्थानीय त्रासदी” नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए सुरक्षा चेतावनी (Wake-up Call) है।

विशेषज्ञ सुझाव:
  1. डिज़ाइन मानकों की समीक्षा: नए डैमों को “क्लाइमेट-रेज़िलिएंट” बनाया जाए।

  2. नियमित निरीक्षण: पुराने डैमों की संरचना की जाँच और रखरखाव।

  3. स्मार्ट टेक्नोलॉजी का उपयोग: AI और रिमोट सेंसिंग के माध्यम से रियल-टाइम निगरानी।

  4. आपदा प्रबंधन योजना: समय पर चेतावनी और त्वरित निकासी व्यवस्था।

  5. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: बहुराष्ट्रीय नदियों और साझा जलाशयों पर संयुक्त प्रबंधन।

6. केस स्टडी: लिबिया का डर्ना डैम हादसा

2023 में लिबिया के Derna Dam Disaster ने यह दिखा दिया कि लापरवाही कितनी महँगी पड़ सकती है।चरम वर्षा और तूफ़ान के कारण दो डैम टूट गए। 11,000 से अधिक लोगों की मौत हुई और हज़ारों लापता हो गए। रिपोर्ट में कहा गया कि वर्षों से डैम की मरम्मत नहीं की गई थी।

यह हादसा वैश्विक समुदाय के लिए आईना है कि डैम सुरक्षा को नजरअंदाज करना, जलवायु आपदाओं को और घातक बना देता है।

7. भारत और एशिया में स्थिति

भारत में लगभग 5,700 बड़े डैम हैं, जिनमें से कई 100 वर्ष पुराने हैं। केरल की बाढ़ (2018) में डैम मैनेजमेंट की खामियाँ उजागर हुईं। हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने से डैमों पर खतरा और बढ़ गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब अपने डैम सुरक्षा अधिनियम 2021 को सख़्ती से लागू करना होगा।

एशिया और अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में यह समस्या और गंभीर है क्योंकि संसाधन सीमित हैं और रखरखाव की कमी आम है।

8. भविष्य की राह: सुरक्षा और सततता

डैम दुर्घटनाओं से सबक लेते हुए दुनिया को अब सुरक्षा और सततता पर ध्यान देना होगा।

ग्रीन एनर्जी के साथ सुरक्षा: हाइड्रोपावर को स्वच्छ ऊर्जा का स्तंभ माना जाता है, लेकिन इसे सुरक्षित बनाना प्राथमिकता होनी चाहिए।

नवाचार (Innovation): AI, ड्रोन सर्विलांस, सैटेलाइट इमेजिंग और IoT आधारित सेंसर का प्रयोग।

समुदाय की भागीदारी: स्थानीय लोगों को चेतावनी तंत्र और आपदा प्रशिक्षण देना।

नीति और निवेश: सरकारों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को सुरक्षा उन्नयन के लिए विशेष फंड बनाना।

सार

डैम दुर्घटनाएँ हमें बार-बार यह याद दिलाती हैं कि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण करने का प्रयास तभी सफल है, जब हम उनकी सीमाओं और खतरों को समझें। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में पुरानी संरचनाओं को सुरक्षित बनाए बिना और नई तकनीकों को अपनाए बिना हम बार-बार त्रासदियों का सामना करेंगे।

इसलिए यह समय है कि दुनिया एक साथ आए और डैम सुरक्षा को उतनी ही प्राथमिकता दे, जितनी स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को देती है। आखिरकार, सुरक्षित डैम ही सतत विकास की गारंटी हैं।

ये भी पढ़ें - AI की ताक़त से डैम निर्माण होगा और सुरक्षित

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