बिजली कर्मचारी संघ का 51वां राज्य सम्मेलन ओबरा में, निजीकरण पर होगी बड़ी बहस
बिजली कर्मचारियों के देश के सबसे बड़े संगठनों में एक उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघ का 51वां राज्य सम्मेलन ओबरा परियोजना में आगामी 6,7 एवं 8 नवम्बर को आयोजित होने जा रहा है। सम्मेलन में निजीकरण, श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव, कर्मचारियों के अधिकारों, सेवा शर्तों और ऊर्जा क्षेत्र की चुनौतियों पर गहन बहस होने की संभावना है। फिलहाल आयोजन की तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है।
सम्मेलन में देशभर से अधिकारी व कर्मचारी नेता, ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञ और श्रम कानून के जानकार भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे। सम्मलेन में राष्ट्रीय स्तर पर निजीकरण और श्रम सुधारों के असर पर साझा दृष्टिकोण तैयार करने के साथ कर्मचारियों की एकजुटता को मजबूती मिल सकती है।
वर्ष 2023 में बिजली कर्मियों की हुयी ऐतिहासिक हड़ताल के बाद भयावह दंडात्मक कार्यवाही ने श्रमिक संगठनों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। ज्यादातर श्रमिक नेताओं के हुए निलंबन के साथ उन्हें दूसरे परियोजनाओं से संबद्ध करने की कार्यवाही ने जिस तरह भय का माहौल पैदा किया है, उसने श्रमिक संगठनों की सक्रियता को बिल्कुल हासिये पर ला दिया है।ऐसे में बिजली उत्पादन के ऐतिहासिक स्थल ओबरा में सम्मलेन होने से कर्मचारी नेताओं को बड़ा बल मिलेगा।
निजीकरण पर गहरी चिंता
पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है। बिजली कर्मचारी संघ लगातार इसका विरोध करता रहा है। कर्मचारियों का मानना है कि निजीकरण से उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा और कर्मचारियों की सेवा शर्तें असुरक्षित होंगी। इस सम्मेलन में इस मुद्दे पर जोरदार बहस होने की संभावना है।
पूर्व सम्मेलनों में भी उठे थे मुद्दे
बिजली कर्मचारी संघ के पिछले सम्मेलनों की चर्चा करें तो हमेशा ही कर्मचारियों की एकता, सेवा शर्तों की सुरक्षा, वेतनमान, पेंशन व्यवस्था और निजीकरण विरोध प्रमुख मुद्दे रहे हैं। 48वें सम्मेलन में कर्मचारियों ने स्पष्ट किया था कि बिजली उत्पादन और वितरण जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को पूरी तरह सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत ही रखा जाना चाहिए। 49वें सम्मेलन में ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते निजी निवेश और उससे कर्मचारियों पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा हुई थी। 50वें सम्मेलन में राष्ट्रीय स्तर पर एक साझा मंच तैयार करने का प्रस्ताव रखा गया, ताकि बिजली क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ संयुक्त रणनीति बनाई जा सके।
इस बार का एजेंडा
ओबरा में होने वाला 51वां सम्मेलन, इन चर्चाओं को आगे बढ़ाते हुए कुछ ठोस प्रस्ताव भी पारित कर सकता है। जिसमे निजीकरण विरोधी आंदोलन की रणनीति तय करना, श्रम कानूनों में संशोधन पर कर्मचारियों की एकजुट राय बनाना, नए वेतनमान और पेंशन मुद्दों पर प्रस्ताव पारित करना एवं ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते तकनीकी बदलावों और कर्मचारियों की भूमिका पर विमर्श करना आदि शामिल हो सकते हैं।
ओबरा का महत्व
सम्मेलन के लिए देश की सबसे बड़ी और पुरानी विधुत नगरी ओबरा को चुना जाना भी महत्वपूर्ण है। ओबरा, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख तापीय विद्युत उत्पादन केंद्र है और यहां बिजली कर्मचारी आंदोलन का गहरा इतिहास रहा है। यहां से कई बार बड़े आंदोलन की शुरुआत हुई है, जिसने पूरे प्रदेश और देश को प्रभावित किया है।