भारत में लिथियम बैटरियों का स्वदेशी उत्पादन बढ़ाने पर जोर
5 वर्षों में 50 गीगावाट घंटा क्षमता का लक्ष्य
भारत सरकार ने देश में लिथियम बैटरियों के स्वदेशी उत्पादन को गति देने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। मई 2021 में मंजूर किए गए "राष्ट्रीय उन्नत रसायन सेल (एसीसी) बैटरी भंडारण कार्यक्रम" के तहत पीएलआई एसीसी स्कीम को लागू किया गया है। इस योजना का कुल परिव्यय 18,100 करोड़ रुपये है, जिसके तहत 2 वर्ष की विकास अवधि के बाद 5 वर्षों में 50 गीगावाट घंटा क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
भारी उद्योग एवं इस्पात राज्य मंत्री भूपतिराजू श्रीनिवास वर्मा ने आज लोकसभा में जानकारी दी कि इस 50 गीगावाट घंटा क्षमता में से 40 गीगावाट घंटा क्षमता पहले ही दो चरणों में चार लाभार्थी कंपनियों को आवंटित कर दी गई है।
यह 40 गीगावाट घंटा क्षमता बहुउद्देश्यीय होगी और इसका उपयोग ई-वाहनों, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, रेल, रक्षा सहित स्थिर ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में किया जा सकेगा। वहीं शेष 10 गीगावाट घंटा क्षमता को विशेष रूप से ग्रिड स्केल स्थिर भंडारण (जीएसएसएस) अनुप्रयोगों के लिए सुरक्षित रखा गया है।
सरकार का मानना है कि इस योजना से देश में घरेलू सेल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, आयात पर निर्भरता घटेगी और बैटरी निर्माण की लागत कम होगी। इसके साथ ही भारत वैश्विक स्तर पर ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन और ई-मोबिलिटी के क्षेत्र में अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करा सकेगा।
क्यों ज़रूरी है ये कदम?
आज भारत बड़ी मात्रा में लिथियम बैटरियां आयात करता है, जो न सिर्फ महंगा पड़ता है बल्कि विदेशी बाज़ारों पर निर्भरता भी बढ़ाता है। इन बैटरियों का इस्तेमाल ई-वाहनों, मोबाइल फोन, लैपटॉप, रेल, रक्षा उपकरणों और बिजली भंडारण प्रणालियों में होता है।
अगर भारत खुद इन्हें बनाएगा तो लागत घटेगी, नई नौकरियां बनेंगी और ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी।
अब तक की प्रगति
40 GWh क्षमता पहले ही देश की चार कंपनियों को उत्पादन के लिए दी जा चुकी है।यह क्षमता बहुउद्देश्यीय होगी – यानी इसका इस्तेमाल ई-वाहन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, रेल और रक्षा क्षेत्र में किया जा सकेगा। शेष 10 GWh क्षमता विशेष रूप से ग्रिड स्केल स्थिर भंडारण (GSSS) के लिए तय की गई है, जिससे बिजली ग्रिड में स्थिरता और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर और पवन) के बेहतर उपयोग को बल मिलेगा।
भारत की स्थिति और भविष्य
दुनिया में लिथियम और बैटरी उत्पादन का बड़ा हिस्सा चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के पास है। भारत देर से इस दौड़ में उतरा, लेकिन अब वह तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। सरकार के इस कदम से भारत ई-मोबिलिटी हब बनने की दिशा में बढ़ेगा और विदेशी कंपनियों पर निर्भरता घटेगी।
आवश्यकता
भारत इलेक्ट्रिक वाहनों और ग्रीन एनर्जी की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। 2030 तक 30% वाहन इलेक्ट्रिक बनाने का लक्ष्य है।मोबाइल, लैपटॉप, रेलवे और रक्षा क्षेत्र में भी बैटरियों की भारी ज़रूरत है। सौर और पवन ऊर्जा को सुरक्षित रखने के लिए बड़े पैमाने पर Energy Storage Systems जरूरी होंगे।
मांग
वर्तमान मांग: लगभग 3-4 GWh।
अनुमानित मांग 2030 तक: 260 GWh।
अकेले ई-वाहनों की हिस्सेदारी: 60% से अधिक।
उपलब्धता
1. लिथियम संसाधन (Resources)
जम्मू-कश्मीर (Reasi जिला)
Geological Survey of India (GSI) ने फरवरी 2023 में रैसी (Salal-Haimana क्षेत्र) में 5.9 मिलियन टन अनुमानित लिथियम संसाधन की खोज की। यह खोज भारत को दुनिया में सातवें सबसे बड़े लिथियम संसाधन वाले देश में शामिल करती है।
राजस्थान (Nagaur जिला)
Degana क्षेत्र में GSI ने और भी बड़े लिथियम संसाधन होने का दावा किया है—इतने कि वह अनुमानित रूप से पूरे देश की लगभग 80% मांग को पूरा कर सकते हैं।
कर्नाटक
Mandya जिले में Atomic Minerals Directorate ने लगभग 1,600 टन लिथियम संसाधन खोजा।
झारखंड
Koderma और Giridih सहित Tilaiya ब्लॉक (Koderma) और Dhodhakola–Kusuma पट्टियाँ में लिथियम और अन्य दुर्लभ खनिजों की संभावना पाई गई है।
मूल अनुमान (बाहरी स्रोत)
कुछ स्रोतों में यह भी उल्लेख है कि भारत में कुल मिलाकर लगभग 50 मिलियन टन लिथियम संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं,जिसमें Reasi और Rajasthan दोनों शामिल हैं। हालांकि यह आंकड़ा आधिकारिक जानकारी पर आधारित नहीं है और इसका सत्यापन आवश्यक है।
आज की स्थिति वैसी है जैसी तेल के लिए खाड़ी देशों पर निर्भरता की है। अगर भारत लिथियम बैटरियों में भी आत्मनिर्भर नहीं हुआ तो भविष्य में बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। लेकिन PLI ACC स्कीम और घरेलू भंडार की खोज से भारत अब दुनिया के सबसे बड़े ई-मोबिलिटी और ऊर्जा भंडारण बाज़ार के रूप में उभर सकता है।
सरकार को उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में जब भारतीय सड़कों पर इलेक्ट्रिक कारें और स्कूटर दौड़ेंगे, तो उनकी बैटरियां आयातित नहीं बल्कि “मेड इन इंडिया” होंगी।