लाइन लॉस के सरकारी आंकड़े ही बने सरकार पर सवालों की बौछार का कारण
लाइन हानि राष्ट्रीय मानक से नीचे फिर भी निजीकरण क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बिजली व्यवस्था की उपलब्धियों पर जारी विज्ञापनों में दिखाए गए आकड़ों को लेकर अब विवाद तेज हो गया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने इन आंकड़ों को आधार बनाकर बिजली के निजीकरण के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
समिति के अनुसार सरकार के विज्ञापन में दावा किया गया है कि वर्ष 2017 में 40% से अधिक की लाइन हानि अब घटकर 15.54% रह गई है, साथ ही प्रदेश में 24 घंटे तक की विद्युत आपूर्ति को भी उल्लेखनीय उपलब्धि बताया गया है। इसी आधार पर संघर्ष समिति ने पलटवार करते हुए पूछा है कि "यदि लाइन लॉस राष्ट्रीय मानकों से नीचे है और आपूर्ति ऐतिहासिक स्तर पर है, तो फिर निजीकरण की ज़रूरत किसे और क्यों है?"
सरकारी आंकड़े ही सरकारी फैसले के खिलाफ
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है, कि भारत सरकार के सितंबर 2020 में जारी ‘स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट’ (SBD) में स्पष्ट उल्लेख है कि जहां लाइन हानियां 16% से कम हैं, वहां DISCOMs का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे में जब उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और दक्षिणांचल DISCOMs का प्रदर्शन इस स्तर से बेहतर है, तो निजीकरण का फैसला भारत सरकार की ही नीति का उल्लंघन बनता है।
विकास के दावे, विनिवेश के बहाने
सरकारी विज्ञापन में यह भी दावा किया गया है कि भीषण गर्मी के महीनों अप्रैल, मई और जून में ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 18–20 घंटे, तहसीलों में 21–22 घंटे, और ज़िला मुख्यालयों में लगभग 24 घंटे बिजली दी गई।
संघर्ष समिति का कहना है कि ये आंकड़े खुद इस बात की पुष्टि करते हैं कि बिजली वितरण व्यवस्था स्थिर, विश्वसनीय और उत्तरदायित्वपूर्ण हो चुकी है। ऐसे में 42 जनपदों की विद्युत संपत्तियों को मात्र ₹1/वर्ग मीटर लीज़ पर निजी हाथों में देना न सिर्फ "जनहित के खिलाफ" है बल्कि यह "लोक संपत्ति की लूट" जैसा कृत्य है।
लाइन लॉस कम, फिर निजीकरण क्यों
मार्च 2017 में जहाँ लाइन हानि 40% थी, वह अब सरकार के मुताबिक 15.54% हो चुकी है। यह आंकड़ा न केवल यूपी में, बल्कि पूरे देश में सुधार का संकेत है। संघर्ष समिति ने जोर देते हुए कहा, "अगर यही प्रदर्शन किसी निजी कंपनी ने किया होता, तो उसे इनाम दिया जाता तो फिर सरकार खुद के प्रदर्शन को सज़ा में क्यों बदल रही है?"
जनसंपर्क और जेल भरो आंदोलन की घोषणा
रविवार को अवकाश के दिन भी समस्त परियोजनाओं और जनपदों में समिति ने बैठकें कर जनसंपर्क किया।
हजारों बिजली कर्मियों ने स्वेच्छा से जेल जाने के लिए नाम दर्ज कराया। समिति ने स्पष्ट किया कि जैसे ही निजीकरण का टेंडर जारी होगा, उसी क्षण से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार और सामूहिक जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा।
कौन लेगा इन उपलब्धियों का श्रेय
संघर्ष समिति का दावा है कि सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़े सरकारी व्यवस्था की सफलता दर्शाते हैं। इसके बावजूद निजीकरण को आगे बढ़ाना, भ्रष्टाचार और कॉर्पोरेट हितों की संलिप्तता की ओर इशारा करता है। एक लाख करोड़ की परिसंपत्तियां कौड़ियों के दाम बेची जा रही हैं और इसका उद्देश्य सिर्फ निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाना है।
सरकार के प्रचार और नीतिगत निर्णयों में जो विरोधाभास उभरकर सामने आया है, उसने अब संघर्ष समिति को और अधिक मुखर कर दिया है। लाइन लॉस के आंकड़े, बिजली आपूर्ति के घंटे और सरकारी व्यवस्थाओं की सफलता को खुद सरकार ने ही दस्तावेज़ कर दिया है। ऐसे में निजीकरण के औचित्य की रक्षा करना अब सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
क्या कहती है केंद्र सरकार की नीति
सितंबर 2020 में भारत सरकार के पावर मंत्रालय ने ड्राफ्ट Standard Bidding Document (SBD) जारी किया, जिसका उद्देश्य था राज्य वितरण कंपनियों (DISCOMs) के निजीकरण की प्रक्रिया को ढांचा प्रदान करना । इस दस्तावेज़ में महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल थे।
Assets Transfer: यदि कोई DISCOM सही ढंग से काम कर रहा है, तो उसकी परिसंपत्तियों का निजी इकाई में परिवर्तन केवल उचित कानूनी आधार और मूल्यांकन के साथ होना चाहिए। हितों का टकराव (Conflict of Interest) से बचने के लिए कड़े नियम।आईन-लाइन सेवा और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए चयन प्रक्रिया स्पष्ट होनी चाहिए।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके मार्गदर्शन में अटूट धारणा थी कि यदि कोई DISCOM प्रारंभिक मापदंड जैसे लाइन हानि आदि के अनुरूप है, तो उसे निजीकरण की मुख्य सूची में शामिल नहीं किया जाना चाहिए ।
लाइन हानि का मापदंड
भारत सरकार की Standard Bidding Document नीति (सितंबर 2020) में यह स्पष्ट रूप से कहीं उल्लेख है कि यदि किसी DISCOM की लाइन हानि 16% से कम है, तो उसे निजीकरण में शामिल नहीं किया जाना चाहिए । इसका तात्पर्य यह है कि निजीकरण की प्रक्रिया में मुश्किल से गुजरने वाले तथा उच्च संरचनात्मक मानदंड पूरे करनेवाले डिस्कॉम्स को बाहर रखा जाना चाहिए।
यहां देखें भारत सरकार की Standard Bidding Document नीति (सितंबर 2020)
ये भी पढ़ें
बिजली क्षेत्र के सरकारी विज्ञापन ने नई बहस को दिया जन्म
इक्विटी ट्रिक से लूट की तैयारी? 42 जनपदों की विद्युत संपत्तियां खतरे में!
ग्रांट थॉर्टन को अमेरिका में सज़ा, यूपी में सम्मान!