40 लाख साल पुराने पत्तों ने बताया कश्मीर की खोई जलवायु की कहानी
वैज्ञानिकों ने खोजा उपोष्णकटिबंधीय अतीत!
आज जहां कश्मीर घाटी को ठंडी और शांत भूमध्यसागरीय जलवायु के लिए जाना जाता है, वहीं वैज्ञानिकों की एक नई रिसर्च ने चौंकाने वाला खुलासा किया है यह इलाका कभी गर्म, नम और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों से भरा था। यह अभूतपूर्व खोज बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (BSIP), लखनऊ के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है।
वैज्ञानिकों को घाटी के करेवा क्षेत्र से 40 लाख साल पुराने जीवाश्म पत्ते मिले, जो दर्शाते हैं कि यहां की जलवायु एक समय घने और हरियाली से भरपूर उपोष्ण कटिबंधीय स्वर्ग जैसी थी। जीवाश्मों की जांच कर वैज्ञानिकों ने पाया कि ये पत्तियां उन पौधों की थीं, जो आज घाटी की सर्द जलवायु में जीवित नहीं रह सकते।
ऐसे की गई यह खोज
BSIP के वैज्ञानिकों डॉ. हर्षिता भाटिया, डॉ. रियाज़ अहमद डार और डॉ. गौरव श्रीवास्तव ने CLAMP तकनीक (Climate Leaf Analysis Multivariate Program) का प्रयोग कर जीवाश्म पत्तियों की बनावट, आकार और किनारों का अध्ययन किया। इसके साथ-साथ, उन्होंने सह-अस्तित्व दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें प्राचीन पौधों की तुलना उनके आधुनिक वंशजों से की गई।
इससे वैज्ञानिक घाटी के उस प्राचीन काल के तापमान और वर्षा पैटर्न का एक स्पष्ट चित्र खींच सके, जब यहां मानसून की भरपूर वर्षा और गर्म जलवायु थी।

ऐसे बदली घाटी की जलवायु
इस जलवायु बदलाव का मुख्य कारण बना पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला का उठना। यह टेक्टॉनिक प्रक्रिया धीरे-धीरे इतनी ऊंची हो गई कि मानसूनी हवाएं घाटी तक नहीं पहुंच पाईं। इससे पानी की आपूर्ति कम हो गई, जंगल सूखने लगे और एक हरे-भरे उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र ने भूमध्यसागरीय जलवायु का रूप ले लिया।
अहम है यह रिसर्च
यह शोध केवल अतीत की जलवायु की झलक नहीं देता, बल्कि आने वाले समय में मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से धरती की पारिस्थितिकी पर होने वाले प्रभावों को समझने में मदद करता है। हिमालय जैसे संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय बदलावों के प्रति सजग रहना अब और भी जरूरी हो गया है।
रिसर्च प्रकाशन
यह महत्वपूर्ण अध्ययन प्रतिष्ठित विज्ञान जर्नल Palaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology में प्रकाशित हुआ है।