हिमालय की हवा में छुपा राज़

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजी ग्रीनहाउस गैसों की जटिल चाल

हिमालय की हवा में छुपा राज़

भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय की ऊंचाइयों पर ग्रीनहाउस गैसों कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की पाँच वर्षों तक लगातार, उच्च गुणवत्ता वाली निगरानी की है। यह अद्भुत खोज नैनीताल स्थित आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARIES) में हुई।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत स्वायत्त अनुसंधान संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एआरआईईएस) द्वारा किए गए एक अध्ययन में, संस्थान के वैज्ञानिकों ने नैनीताल में एक उच्च ऊंचाई वाले अनुसंधान स्थल पर पांच वर्षों का डेटा एकत्र किया।

डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव और डॉ. मनीष नाजा ने पाया कि प्राकृतिक प्रक्रियाएं और मानवीय गतिविधियां मिलकर मध्य हिमालयी क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैसों - कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ₂) और मीथेन (सीएच₄) तथा कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) को कैसे आकार देती हैं। ये अवलोकन दक्षिण एशिया के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए भू-आधारित वायुमंडलीय आंकड़ों में एक महत्वपूर्ण कमी को पूरा करते हैं, जिन्हें लंबे समय से वैश्विक जलवायु निगरानी में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है।

हिमालय की हवा है खास?

मध्य हिमालय का इलाका बेहद संवेदनशील है। यहाँ की हवा पर जलवायु परिवर्तन, खेती, जंगलों की कटाई और मानव गतिविधियों का सीधा असर होता है। शोध में पता चला कि CO₂ दिन में घटती है, क्योंकि पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण करते हैं।CH₄ और CO दिन में बढ़ते हैं, क्योंकि नीचे से प्रदूषक ऊपर की ओर उड़ते हैं।

मौसम और खेती का गहरा रिश्ता

वसंत में जब पेड़ कम होते हैं और जैव ईंधन जलाया जाता है तब CO₂ बढ़ता है। शरद में धान की खेती और खेतों में पानी भराव से CH₄ बढ़ता है। CO वसंत के अंत में चरम पर होता है, जब क्षेत्रीय प्रदूषण हवा के जरिए यहाँ पहुँचता है।

image001YBZM
चित्र (क) वर्ष 2014-2018 के दौरान नैनीताल (एनटीएल) और मौना लोआ, में सीओ2, सीएच4 और सीओ का रुझान। (ख) जीवाश्म ईंधन दहन (सीओएफएफ) और जैवभार दहन (सीओबीबी) से उत्पन्न अतिरिक्त सीओ/सीओ2, पीपीबी/पीपीएम में मासिक परिवर्तन, उत्तरी भारतीय क्षेत्र (24-35° उत्तर, 70-89° पूर्व) में आग लगने की घटनाएं और स्थल पर सीमा परत की ऊंचाई। पीले रंग से चिह्नित क्षेत्र जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन और जैवभार उत्सर्जन के लिए रिपोर्ट किए गए उत्सर्जन अनुपातों को दर्शाता है।

 

गैसों का दीर्घकालिक रुझान
गैस वार्षिक वृद्धि/गिरावट प्रमुख कारण
CO₂ +2.66 ppm/वर्ष मानवीय उत्सर्जन
CH₄ +9.53 ppb/वर्ष कृषि, अपशिष्ट
CO -3.15 ppb/वर्ष दहन तकनीक में सुधार

 रिसर्च बेहद ज़रूरी
  • ग्लोबल मॉनिटरिंग में भारत की आवाज़ जोड़ता है

  • स्थानीय नीति निर्धारण में मदद करता है

  • जलवायु मॉडल और उपग्रह डाटा को करता है सटीक

साधारण भाषा में समझें तो...

हिमालय की हवा हमें यह बता रही है कि प्रकृति और इंसान, दोनों की गतिविधियों का सीधा असर वहां की जलवायु पर पड़ रहा है। यह रिसर्च सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए नहीं, बल्कि आम लोगों के लिए भी चेतावनी है कि अब समय आ गया है प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेने का।

 

Latest News

सूरज की रोशनी से बना शक्तिशाली कीटाणुनाशक सूरज की रोशनी से बना शक्तिशाली कीटाणुनाशक
अब सूरज की रोशनी और पानी से, एक खास प्रकाश उत्प्रेरक (Photocatalyst) की मदद से सीधा हाइड्रोजन पेरोक्साइड (H₂O₂) बनाया...
हिमालय की हवा में छुपा राज़
सोन नदी के जलस्तर में कमी आना शुरू
गयाना जैसे विशाल ऊर्जा भंडार अंडमान सागर में मिलने की उम्मीद
सोनभद्र में बाढ़ का संकट,बाणसागर से छोड़े गए पानी से हालात बिगड़े
चंडीगढ़ में उत्तर भारत का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्लांट चालू
सौर ऊर्जा की प्रगति के बावजूद कोयले पर भारी निर्भरता बरकरार – IEEFA रिपोर्ट
लद्दाख में दिखी उत्तरी रोशनी! वैज्ञानिकों ने सौर तूफान की अद्भुत कहानी का किया खुलासा
एनएलसी इंडिया लिमिटेड को 7,000 करोड़ रुपये निवेश की छूट
एनटीपीसी को नवीकरणीय ऊर्जा निवेश के लिए 20,000 करोड़ तक अधिकार