सिंगरौली में कोयला अपशिष्ट से मिला दुर्लभ मृदा तत्वों का खजाना
'कचरा' समझा गया कोयला अपशिष्ट अब बनेगा करोड़ों का खजाना!
भारत ने कोयला खदानों के अपशिष्ट में छिपे रणनीतिक खजाने की खोज में एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज की है। सिंगरौली कोयला क्षेत्र से लिए गए कोयला, मिट्टी, शेल और बलुआ पत्थर के नमूनों में दुर्लभ मृदा तत्वों (Rare Earth Elements – REEs) की उल्लेखनीय मात्रा पाई गई है, जो अब तक दुनिया के गिने-चुने देशों के पास एकाधिकार में थी।केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में यह जानकारी दी। दुर्लभ मृदा तत्व जैसे नियोडियम, यिट्रियम, डाइस्प्रोसियम आदि अत्याधुनिक तकनीकों में अनिवार्य हैं।
सिंगरौली क्षेत्र से लिए गए कोयला, मिट्टी, शेल और बलुआ पत्थर के नमूनों में किए गए विश्लेषण से पता चला है कि कोयला नमूनों में औसतन 250 पीपीएम और गैर-कोयला नमूनों में करीब 400 पीपीएम तक दुर्लभ मृदा तत्व मौजूद हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इन तत्वों का किफायती निष्कर्षण तकनीकी प्रगति और पैमाने की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करेगा।
दुर्लभ मृदा तत्वों की उपस्थिति
सिंगरौली कोयला क्षेत्र, जो देश की प्रमुख कोयला उत्पादक पट्टियों में से एक है, वहां की गोंडवाना तलछटी संरचना (Gondwana Sedimentary Formation) से लिए गए विभिन्न भूवैज्ञानिक नमूनों,जैसे कि कोयला, मिट्टी, शेल (स्लेट जैसी चट्टानें) और बलुआ पत्थर का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। इस विश्लेषण में यह महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है कि इन नमूनों में दुर्लभ मृदा तत्वों (Rare Earth Elements - REEs) की उल्लेखनीय उपस्थिति है।
विशेष रूप से, कोयले के नमूनों में औसतन 250 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) और गैर-कोयला नमूनों (मिट्टी, शेल और बलुआ पत्थर) में लगभग 400 पीपीएम तक आरईई की सांद्रता पाई गई है। यह स्तर वैश्विक औसत के तुलनात्मक स्तर पर है और भारत के लिए एक नई घरेलू आपूर्ति संभावना को इंगित करता है। यह तथ्य भारत की रणनीतिक खनिज सुरक्षा नीति के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि दुर्लभ मृदा तत्व इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, अंतरिक्ष, अक्षय ऊर्जा (विशेषकर विंड टरबाइन और इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों) में उपयोग किए जाते हैं और वर्तमान में इनका अधिकांश हिस्सा चीन जैसे देशों से आयात किया जाता है।
.jpg)
दूसरी खदानों में भी संभावनाएं
वहीं, सिंगरेनी थर्मल पावर प्लांट (एसटीपीपी) और एनएलसी इंडिया लिमिटेड की खदानों से लिए गए फ्लाई ऐश और ओवरबर्डन क्ले के नमूनों में भी आरईई की अच्छी मात्रा पाई गई है। एनएलसी की फ्लाई ऐश में तो 2100 मिलीग्राम/किग्रा तक आरईई और 300 मिलीग्राम/किग्रा यिट्रियम मिला है।
इस महत्वपूर्ण खोज को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने 29 जनवरी 2025 को "राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM)" की स्थापना को मंज़ूरी दी थी। मिशन के तहत ओवरबर्डन, टेलिंग्स, फ्लाई ऐश और रेड मड जैसे अपशिष्ट स्रोतों से महत्वपूर्ण खनिज निकालने के लिए पायलट परियोजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है। साथ ही, 6 अप्रैल 2025 को उत्कृष्टता केंद्र (CoE) की स्थापना हेतु दिशा-निर्देश भी स्वीकृत किए गए।
उत्तर-पूर्वी भारत और स्वदेशी तकनीक पर भी ध्यान
सीआईएल ने उत्तर-पूर्वी कोयला क्षेत्रों में भी आरईई और अन्य खनिजों के मूल्यांकन के लिए परियोजनाएं शुरू की हैं। यहां भले ही कुल आरईई की मात्रा कम है, लेकिन भारी आरईई की उपस्थिति अधिक पाई गई है। साथ ही, भौतिक पृथक्करण और आयन-एक्सचेंज रेजिन तकनीक के माध्यम से खनिज निष्कर्षण के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास भी किया गया है।
सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) ने इस क्षेत्र में अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए खनिज एवं सामग्री प्रौद्योगिकी संस्थान (IMMT), भुवनेश्वर; अलौह सामग्री प्रौद्योगिकी विकास केंद्र (NFTDC), हैदराबाद और आईआईटी हैदराबाद के साथ एमओयू भी किए हैं।