जिनसे सीखा था अमिताभ बच्चन ने अपना सिग्नेचर स्टेप
भगवान दादा थे हिंदी सिनेमा जगत के पहले डांसिंग मास्टर
हिंदी सिनेमा के पहले डांसिंग स्टार भगवान दादा ने अभिनय एवं नृत्य की अनोखी शैली से कॉमेडी को नई परिभाषा दी और उनकी अदाओं को बाद की कई पीढ़ियों के अभिनेताओं ने अपनाया। भगवान दादा ने मूक फ़िल्मों के दौर से अपने अभिनय जीवन की शुरुआत की थी, लेकिन उनके हास्य अभिनय और नृत्य शैली ने अपने दौर में जबरदस्त धूम मचाई। आज के दौर के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी उनकी नृत्य शैली का अनुसरण किया। फ़िल्मों में प्रवेश के लिए उन्हें काफ़ी मशक्कत करना पड़ी और अंतत: उन्हें 1930 में ब्रेक मिला, जब निर्माता सिराज अली हकीम ने अपनी मूक फ़िल्म बेवफा आशिक में एक कॉमेडियन की भूमिका दी।
भारतीय अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक भगवान दादा का जन्म:1 अगस्त 1913 मुम्बई में तथा मृत्यु:4 फ़रवरी 2002 को मुम्बई में ही हुआ था। हिन्दी फ़िल्मों में नृत्य की एक विशेष शैली की शुरूआत करने वाले भगवान दादा ऐसे 'अलबेला' सितारे थे, जिनसे महानायक अमिताभ बच्चन सहित आज की पीढ़ी तक के कई कलाकार प्रभावित और प्रेरित हुए। फ़िल्मों में प्रवेश के लिए उन्हें काफ़ी मशक्कत करना पड़ा और अंतत: उन्हें 1930 में ब्रेक मिला, जब निर्माता सिराज अली हकीम ने अपनी मूक फ़िल्म 'बेवफा आशिक' में एक कॉमेडियन की भूमिका दी। इसके बाद उन्होंने कई मूक फ़िल्मों में अभिनय किया।
फ़िल्मी कैरियर
भगवान दादा ने अपने जीवन की शुरूआत श्रमिक के रूप में की लेकिन फ़िल्मों के आकर्षण ने उन्हें उनके पसंदीदा स्थल तक पहुंचा दिया। भगवान मूक फ़िल्मों के दौर में ही सिनेमा की दुनिया में आ गए। उन्होंने शुरूआत में छोटी-छोटी भूमिकाएँ की। बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू होने के साथ उनके करियर में नया मोड़ आया। भगवान दादा के लिए 1940 का दशक काफ़ी अच्छा रहा। इस दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएँ की। इन फ़िल्मों में 'बेवफा आशिक', 'दोस्ती', 'तुम्हारी कसम', 'शौकीन' आदि शामिल हैं। अभिनय के साथ ही उन्हें फ़िल्मों के निर्माण निर्देशन में भी दिलचस्पी थी। उन्होंने जागृति मिक्स और भगवान आर्ट्स प्रोडक्शन के बैनर तले कई फ़िल्में बनाई जो समाज के एक वर्ग में विशेष रूप से लोकप्रिय हुई। इन फ़िल्मों में 'मतलबी', 'लालच', 'मतवाले', 'बदला' आदि प्रमुख हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनकी अधिकतर फ़िल्में कम बजट की तथा एक्शन फ़िल्में होती थी।
निधन
करीब छह दशक लंबे अपने फ़िल्मी जीवन में भगवान दादा ने क़रीब 48 फ़िल्मों का निर्माण या निर्देशन किया, लेकिन बॉम्बे लैबोरेट्रीज में लगी आग के कारण 'अलबेला' और 'भागमभाग' छोड़कर सभी फ़िल्मों का निगेटिव जल गया और नई पीढ़ी बेहतरीन कृतियों से वंचित रह गई। एक समय बंगला और कई कारों के मालिक भगवान अपनी मित्रमंडली से घिरे रहते थे, पर नाकामी के साथ ही धीरे-धीरे सब छूटने लगा। जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें चॉल में रहना पड़ा। अभिनय और नृत्य की नई इबारत लिखने वाला यह कलाकार 4 फ़रवरी 2002 को 89 साल की उम्र में अपना दर्द समेटे हुए बेहद खामोशी से इस दुनिया को विदा कह गया।
साभार-bharatdiscovery.org