जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये

जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये

महान् शायर और गीतकार शकील बदायूँनी का जन्म: 3 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के बदायूँ में हुआ था।  तहजीब के शहर लखनऊ ने फ़िल्म जगत को कई हस्तियां दी हैं, जिनमें से एक गीतकार शकील बदायूँनी भी हैं। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी आपूर्ति विभाग की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और वर्ष 1946 में दिल्ली से मुंबई आ गये थे। शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित "चौदहवी का चांद" फ़िल्म के 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..' गाने के लिये दिया गया था।

प्रमुख गीत

शकील बदायूँनी ने क़रीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में लगभग 90 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फ़िल्मी सफर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फ़िल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फ़िल्म दर्द के गीत 'अफ़साना लिख रही हूँ...' की अपार सफलता से शकील बदायूँनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे। 

अफ़साना लिख रही हूँ... (दर्द)

चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो... (चौदहवीं का चांद)

जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये.. (बीस साल बाद, 1962)

नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं... (सन ऑफ़ इंडिया)

गाये जा गीत मिलन के.. (मेला)

सुहानी रात ढल चुकी.. (दुलारी)

ओ दुनिया के रखवाले.. (बैजू बावरा)

दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पडे़गा (मदर इंडिया)

दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.. (कोहिनूर)

प्यार किया तो डरना क्या...(मुग़ले आज़म)

ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962)

नैन लड़ जइहें तो मन वा मा कसक होइबे करी.. (गंगा जमुना)

दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965)

निधन

लगभग 54 वर्ष की उम्र मे 20 अप्रैल 1970 को उन्होंने अपनी अंतिम सांसें ली। शकील बदायूँनी की मृत्यु के बाद उनके मित्रों नौशाद, अहमद जकारिया और रंगून वाला ने उनकी याद मे एक ट्रस्ट 'यादें शकील' की स्थापना की ताकि उससे मिलने वाली रकम से उनके परिवार का खर्च चल सके।

साभार-bharatdiscovery.org

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