ग्लेशियरों के पिघलने से प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम

ग्लेशियरों के पिघलने से प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम

नई दिल्ली - भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने को गंभीरता से लिया है। इसके मद्देनजर, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के माध्यम से ग्लेशियरों और उनके पिघलने के बारे में कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन किए जा रहे हैं। इनमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय प्रमुख रूप से शामिल हैं।

हिमाचल प्रदेश के चंद्रा बेसिन में छह ग्लेशियरों की निगरानी राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) द्वारा की जा रही है। इस अध्ययन से पता चला है कि चंद्रा बेसिन की दो प्रमुख ग्लेशियल झीलों (समुद्र टापू और गेपांग गथ) ने पिछले पांच दशकों के दौरान अपने क्षेत्र और मात्रा में महत्वपूर्ण विस्तार दिखाया है। यह विस्तार ग्लेशियल झील के फटने से होने वाली बाढ़ (जीएलओएफ) और उसके संभावित खतरे के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

उत्तराखंड के ग्लेशियेटेड क्षेत्रों में किए गए अध्ययनों से ग्लेशियरों के सिकुड़ने और मलबे के प्रवाह जैसी खतरनाक स्थितियों की बढ़ती आशंका की पुष्टि हुई है। डीएसटी ने हिमालयी क्रायोस्फीयर पर एक नेटवर्क कार्यक्रम भी स्थापित किया है, जो ग्लेशियर अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दे रहा है।

इसके अलावा, जल संसाधन मंत्रालय ने 2023 में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान में क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य देश में बर्फ और ग्लेशियर संसाधनों के प्रबंधन को प्रभावी बनाना है।

विभिन्न राज्यों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले एक दशक में उत्तराखंड, लद्दाख और सिक्किम में ग्लेशियर से संबंधित कई प्रमुख आपदाएँ घटित हुई हैं। हालांकि, हिमाचल प्रदेश में इस अवधि में ऐसी कोई आपदा नहीं हुई है।

यह जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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