बिजली महापंचायत ने खोली पोल–टेंडर से पहले ही 2200 करोड़ का खेल?
बिजली निजीकरण के नाम पर 66,000 करोड़ की खुली लूट?
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित बिजली महापंचायत में आज बड़ा आरोप लगाते हुए कहा गया कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की प्रक्रिया के पीछे एक बड़े स्तर के भ्रष्टाचार की साजिश चल रही है, जिसकी सीबीआई से उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है।
महापंचायत में भाग लेने वाले वरिष्ठ नेताओं और बिजली संगठनों ने खुलासा किया कि पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन और शासन के कुछ आला अधिकारियों ने अवैध रूप से नियुक्त ट्रांजैक्शन कंसलटेंट ग्रांट थॉर्टन के साथ मिलीभगत कर के आरएफपी (RFP) दस्तावेज तैयार करवाए और बिना पारदर्शी प्रक्रिया के विद्युत नियामक आयोग को भेज दिया। लेकिन आयोग ने इन दस्तावेजों को गंभीर आपत्तियों के साथ लौटा दिया, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि यह पूरी प्रक्रिया जल्दबाजी और मनमाने आंकड़ों के आधार पर संचालित की जा रही थी।
फर्जी घाटा और फर्जी आंकड़े
महापंचायत के मुख्य प्रस्ताव में यह दावा किया गया कि आरएफपी दस्तावेज में घाटा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है और इसके पीछे फर्जी आंकड़ों का सहारा लिया गया, जिससे जनता और सरकार को गुमराह किया जा सके। वक्ताओं ने कहा कि जिन अधिकारियों ने यह फर्जीवाड़ा किया है, उनके खिलाफ सीबीआई जांच आवश्यक है, ताकि सच्चाई सामने आ सके।
निजीकरण के पुराने मॉडल हुए फेल, फिर क्यों दोहराई जा रही भूल?
महापंचायत में विभिन्न क्षेत्रों में विफल निजीकरण मॉडल की मिसालें पेश की गईं। वक्ताओं ने बताया कि उड़ीसा,भिवंडी,औरंगाबाद,जलगांव,नागपुर,मुजफ्फरपुर,गया,ग्रेटर नोएडा,आगरा आदि सभी क्षेत्रों में बिजली के निजीकरण का प्रयोग असफल रहा है और उपभोक्ताओं को महंगी, अनियमित और अविश्वसनीय बिजली सेवा ही मिली है। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों की गरीब जनता पर यह प्रयोग थोपा जा रहा है, जो पूरी तरह अन्यायपूर्ण और जनविरोधी है।
आगरा मॉडल से हर माह 1000 करोड़ का नुकसान!
प्रस्ताव में आगरा का उदाहरण देते हुए कहा गया कि वहां निजी कंपनी Torrent Power के आने के बाद पावर कारपोरेशन को हर माह ₹1000 करोड़ का घाटा हो रहा है। कंपनी ने ₹2200 करोड़ बिजली राजस्व बकाया हड़प लिया है, जो आज तक वापस नहीं किया गया। अब यही निजी कंपनियाँ पूर्वांचल और दक्षिणांचल के ₹66,000 करोड़ के बकाये राजस्व पर नज़रें गड़ाए हुए हैं।
₹1 की लीज पर सरकारी ज़मीन?
इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 131 का हवाला देते हुए कहा गया कि किसी भी सरकारी कंपनी के निजीकरण से पहले उसकी संपत्तियों और राजस्व की क्षमता का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाना जरूरी है। लेकिन इसके स्थान पर 42 जिलों की करोड़ों की जमीन मात्र ₹1 की लीज पर निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी की जा रही है।
संघर्ष समिति ने इसे "बिजली व्यवस्था की खुली लूट" करार दिया और इसे जनता की गाढ़ी कमाई पर प्रहार बताया।
संकल्प और चेतावनी
बिजली महापंचायत में सर्वसम्मति से यह संकल्प पारित किया गया कि अवैध रूप से नियुक्त ट्रांजैक्शन कंसलटेंट और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ CBI जांच की जाए।गलत आंकड़ों के सहारे जनता को गुमराह कर किए जा रहे निजीकरण को तत्काल रोका जाए।अगर टेंडर निकाला गया तो सभी बिजली कर्मचारी, अभियंता, संविदा कर्मी, किसान, उपभोक्ता और कर्मचारी संगठन मिलकर कार्य बहिष्कार और जेल भरो आंदोलन करेंगे।
निजीकरण नहीं, जवाबदेही चाहिए
बिजली महापंचायत के मंच से यह स्पष्ट संदेश गया कि बिजली व्यवस्था को मुनाफाखोरी का जरिया नहीं बनने दिया जाएगा। सरकारी ढांचे को मजबूत करने की बजाय उसे निजी हाथों में सौंपना एक लंबी अवधि की जनविरोधी नीति साबित होगी।
यह आंदोलन अब केवल बिजली कर्मचारियों का नहीं, बल्कि जनता, किसान, और उपभोक्ता हितों की लड़ाई बन चुका है — और ये संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक निजीकरण का निर्णय वापस नहीं लिया जाता।
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