अडानी पावर को एनसीएलटी की मंजूरी, VIPL का ₹4,000 करोड़ में अधिग्रहण तय
बढ़ता जा रहा है अडानी समूह का दबदबा
भारत के सबसे तेज़ी से बढ़ते कॉरपोरेट घरानों में शामिल अडानी समूह ने एक और बड़ी उपलब्धि अपने नाम कर ली है। अडानी पावर लिमिटेड (APL) को अब विदर्भ इंडस्ट्रीज पावर लिमिटेड (VIPL) के 100% अधिग्रहण की मंजूरी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT), मुंबई बेंच से मिल गई है। यह सौदा ₹4,000 करोड़ की कीमत पर तय हुआ है और इसे 17 जुलाई, 2025 तक पूरा कर लेने की उम्मीद है।
यह अधिग्रहण न केवल अडानी पावर की ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत पकड़ को और सुदृढ़ करता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि कैसे यह समूह संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को अधिग्रहण कर अपने व्यापार साम्राज्य का विस्तार कर रहा है।
VIPL: एक संकटग्रस्त लेकिन मूल्यवान परिसंपत्ति
VIPL, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड का हिस्सा रही है, जिसने महाराष्ट्र के नागपुर जिले के बुटीबोरी में स्थित 600 मेगावाट (2×300 MW) की कोयला आधारित ताप विद्युत परियोजना का संचालन किया।
इस संयंत्र को 2009 में शुरू किया गया था और 2013-14 तक दोनों यूनिट्स ने वाणिज्यिक उत्पादन शुरू कर दिया था। परियोजना की लागत लगभग ₹4,063 करोड़ आंकी गई थी। हालांकि, बढ़ती कोयला लागत, बिजली खरीद समझौतों की कमी और भारी वित्तीय ऋण के चलते VIPL पर संकट गहराता गया।
मार्च 2020 में, VIPL को दिवाला प्रक्रिया (Insolvency Proceedings) के तहत NCLT में लाया गया। इसके बाद कंपनी की नीलामी प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें अडानी पावर लिमिटेड ने सर्वोत्तम प्रस्ताव पेश किया।
अधिग्रहण के पीछे की रणनीति
अडानी पावर का यह अधिग्रहण न सिर्फ एक संकटग्रस्त संयंत्र को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम है, बल्कि यह कंपनी के महाराष्ट्र और पश्चिम भारत में अपने ऊर्जा नेटवर्क को और मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा भी है। बुटीबोरी संयंत्र की भौगोलिक स्थिति — औद्योगिक केंद्रों और ट्रांसमिशन नेटवर्क के निकट — इसे अडानी समूह के लिए रणनीतिक रूप से अहम बनाती है।
इस सौदे के साथ ही अडानी पावर की कुल स्थापित क्षमता में 600 मेगावाट की बढ़ोतरी होगी, जिससे कंपनी की कुल क्षमता 15 GW से अधिक हो जाएगी।
अडानी समूह का बढ़ता प्रभाव
पिछले कुछ वर्षों में, अडानी समूह ने ऊर्जा, हवाई अड्डे, बंदरगाह, डेटा सेंटर, मीडिया और रक्षा जैसे क्षेत्रों में तेज़ी से विस्तार किया है। पॉवर सेक्टर में खासतौर से अडानी समूह की मौजूदगी अब राष्ट्रीय ऊर्जा परिदृश्य को प्रभावित करने लगी है।
VIPL जैसे अधिग्रहण इस बात का संकेत हैं कि अडानी समूह केवल नई परियोजनाएं शुरू करने में नहीं, बल्कि संघर्षरत और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को पुनर्जीवित करने में भी रुचि रखता है। यह रणनीति न केवल कंपनी के विस्तार को गति देती है, बल्कि उसे बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त भी दिलाती है।
पुनरुद्धार की राह
NCLT द्वारा स्वीकृत इस योजना के तहत, अडानी पावर को VIPL के सभी शेयर ₹4,000 करोड़ में हस्तांतरित किए जाएंगे। इसके अलावा, कंपनी VIPL के पुराने कर्जों और संचालन दायित्वों को भी संभालेगी।
यह अधिग्रहण ऐसे समय में हुआ है जब देश की ऊर्जा मांग शहरीकरण, डिजिटलाइजेशन और इलेक्ट्रिफिकेशन के चलते तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में VIPL का पुनरुद्धार और अडानी पावर की विशेषज्ञता देश के ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्य को आगे बढ़ा सकती है।
VIPL अधिग्रहण एक और उदाहरण है कि कैसे अडानी समूह भारत की ऊर्जा अवसंरचना में गहराई से जुड़ता जा रहा है। जहां एक ओर यह अधिग्रहण महाराष्ट्र की ऊर्जा आपूर्ति को स्थिरता देगा, वहीं दूसरी ओर यह अडानी पावर को भारत के ऊर्जा नक्शे पर एक और महत्वपूर्ण मोर्चा प्रदान करेगा।
इस सौदे के पूरा होते ही, यह देखना दिलचस्प होगा कि अडानी समूह VIPL को किस रणनीति से पुनर्जीवित करता है और देश की ऊर्जा जरूरतों में किस तरह की नई ऊर्जा भरता है।