FGD से प्रदूषण घटा नहीं, उल्टा बढ़ा CO₂! आईआईटी की रिपोर्ट से उठे बड़े सवाल
भारत में थर्मल पावर प्लांट्स के लिए जरूरी है नई सोच
नई दिल्ली। देशभर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट्स) में फ्ल्यू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) प्रणाली की अनिवार्यता को लेकर अब नई बहस छिड़ गई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा 2015 में लाए गए Environment (Protection) Amendment Rules के तहत एफजीडी को अनिवार्य किया गया था। इसका उद्देश्य सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) जैसे घातक गैसों के उत्सर्जन को कम करना था, जो वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।
हाल ही में IIT दिल्ली और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक व्यापक सर्वेक्षण ने एफजीडी की वास्तविक उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सर्वे फरवरी 2023 से फरवरी 2024 के बीच तीन चरणों में किया गया था, जिसमें देश के विभिन्न शहरों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया—
श्रेणी 1: जहाँ कोई थर्मल पावर प्लांट नहीं है
श्रेणी 2: जहाँ एफजीडी रहित टीपीपी हैं
श्रेणी 3: जहाँ एफजीडी युक्त टीपीपी हैं
SO₂ का स्तर तो नियंत्रित, लेकिन एफजीडी की उपयोगिता संदिग्ध
अध्ययन में पाया गया कि सभी श्रेणी के शहरों में 24 घंटे की औसत SO₂ सांद्रता राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) 80 माइक्रोग्राम/घनमीटर से नीचे रही। फिर भी, थर्मल पावर प्लांट्स के समीप स्थित शहरों (श्रेणी 2 और 3) में औसतन SO₂ स्तर अन्य शहरों की तुलना में अधिक पाया गया।
विशेष रूप से गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश) और खरगोन (मध्य प्रदेश) जैसे एफजीडी युक्त शहरों में भी उत्सर्जन में कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं देखी गई। यहां तक कि एफजीडी की चालू स्थिति और सक्रिय इकाइयों की संख्या के साथ भी वायु गुणवत्ता में कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया।
त्योहारों के समय प्रदूषण में तीव्र वृद्धि
कोटा (राजस्थान) में त्योहारों के दौरान SO₂ स्तर 68.09 माइक्रोग्राम/घनमीटर तक पहुंच गया, जबकि सामान्य दिनों में यह 48.56 था।गौतम बुद्ध नगर में यह 70.14 तक गया, जो सामान्य दिनों के मुकाबले लगभग दोगुना था।
FGD का PM2.5 और PM10 पर प्रभाव मामूली
FGD की स्थापना से कणीय पदार्थों (PM2.5 और PM10) की मात्रा में बहुत सीमित सुधार देखा गया। अध्ययन के अनुसार:
PM2.5 में योगदान केवल 0.96-5.21%
PM10 में योगदान केवल 0.57-3.67%
एफजीडी की 87.5% दक्षता पर भी PM स्तरों में कुल सुधार मात्र 5% ही होगा
FGD: पर्यावरणीय व आर्थिक लागत भारी
एफजीडी की स्थापना से SO₂ उत्सर्जन में 4.88 मिलियन टन की कमी आ सकती है, लेकिन इसके बदले CO₂ उत्सर्जन में 14.4 मिलियन टन की वृद्धि का अनुमान है। इसका कारण एफजीडी संचालन में लगने वाली अतिरिक्त ऊर्जा, रसायन, जल उपयोग और खनन से जुड़ी गतिविधियाँ हैं। साथ ही, हर एक SO₂ अणु के पकड़ने पर एक CO₂ अणु उत्पन्न होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के संकट और गहरे हो सकते हैं।
भारत में अम्लीय वर्षा का जोखिम सीमित
हालांकि SO₂ अम्लीय वर्षा का कारण बन सकता है, लेकिन भारत में कृषि और धूल के जरिए वातावरण में मौजूद क्षारीय तत्व इसे काफी हद तक संतुलित कर देते हैं। केवल दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में अम्लीय वर्षा की समस्या देखी जाती है।
रणनीतिक समीक्षा जरूरी
इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को देखते हुए विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
- जहाँ FGD परियोजनाएं शुरू नहीं हुई हैं, वहाँ इन पर अस्थायी रोक लगाई जाए।
- चल रही परियोजनाओं को एक साल तक परीक्षण रूप में चलाया जाए, फिर उनके प्रभाव का मूल्यांकन किया जाए।
- FGD तकनीक पर व्यापक Life Cycle Assessment (LCA) और Life Cycle Cost (LCC) अध्ययन किया जाए।
- स्वास्थ्य प्रभावों का तुलनात्मक अध्ययन हो—सल्फेट एरोसोल की कमी से होने वाले फायदे बनाम हीट स्ट्रेस के खतरे।
- CO₂ उत्सर्जन बढ़ने से जुड़े जलवायु प्रभावों की गहराई से समीक्षा की जाए।
- पुराने और अप्रभावी थर्मल पावर प्लांट्स को चरणबद्ध रूप से बंद करने की नीति बने।
- वैकल्पिक निवेश — सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ स्रोतों में निवेश को प्राथमिकता दी जाए।
IIT दिल्ली की यह रिपोर्ट एक समय पर आई चेतावनी है कि केवल तकनीकी उपायों से प्रदूषण नहीं घटाया जा सकता जब तक उनका प्रभाव स्पष्ट और ठोस न हो। FGD जैसे उपायों पर अरबों रुपये खर्च करने से पहले उसके लाभ, हानि और पर्यावरणीय परिणामों की पूरी समीक्षा जरूरी है।
भारत को चाहिए कि वह अब कोयले पर आधारित ऊर्जा ढांचे से धीरे-धीरे बाहर निकले और नवीकरणीय ऊर्जा के मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़े।
भारत में FGD सिस्टम पर अनुमानित खर्च: एक विश्लेषण
भारत सरकार ने 2015 में Environment (Protection) Amendment Rules के तहत कोयला-आधारित ताप विद्युत संयंत्रों (Thermal Power Plants - TPPs) में FGD सिस्टम की स्थापना अनिवार्य कर दी थी। इसका उद्देश्य सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन को नियंत्रित करना है, जो वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
लेकिन देशभर में FGD लागू करने की लागत को लेकर अब गंभीर सवाल उठने लगे हैं खासतौर पर तब, जब IIT दिल्ली और CEA की रिपोर्ट में इसके सीमित प्रभाव को दर्शाया गया है।
भारत में कुल अनुमानित लागत
कुल कोयला आधारित बिजली क्षमता (2023 तक)
- 211,860 MW
📚 Source: Central Electricity Authority (CEA), March 2023
FGD इंस्टॉलेशन की प्रति मेगावाट लागत
- ₹1.0 करोड़ से ₹1.2 करोड़ / MW
(औसतन ₹1.2 करोड़ का आकलन लिया गया है)
Source: Ministry of Power, Government of India (2022)
अनुमानित कुल स्थापना लागत
211,860 MW×₹1.2 करोड़ / MW=₹2,542.32 अरब (₹2.54 लाख करोड़)
Source Referenced in CEA-FICCI Presentation on FGD Implementation, 2022
ऑपरेशन और रखरखाव (O&M) लागत
- प्रति मेगावाट वार्षिक O&M खर्च: ₹8 लाख – ₹12 लाख
- पूरे देश के लिए अनुमानित वार्षिक खर्च (औसत ₹10 लाख/MW मानकर):
211,860 MW×₹10,00,000=₹21,186करोड़/वर्ष
Source: NTPC & TERI joint technical studies, 2021
अन्य पर्यावरणीय और आर्थिक लागतें
श्रेणी | अनुमानित लागत/प्रभाव |
पानी की खपत | 1.7–2.4 m³ प्रति MWh (राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक उपयोग) |
CO₂ उत्सर्जन में वृद्धि | 14.4 मिलियन टन / वर्ष (FGD संचालन से जुड़ी ऊर्जा खपत से) |
जिप्सम प्रबंधन | हर 1 टन SO₂ पर 2-3 टन जिप्सम उत्पन्न (स्थायी निपटान आवश्यक) |
लाइमस्टोन खनन | अतिरिक्त खनन, ट्रांसपोर्ट और पर्यावरणीय प्रभाव |
Source: IEA “Water for Energy Report”, IPCC CCS 2005, MoEFCC Guidelines
अब तक की प्रगति और स्थिति (2024 तक)
स्थिति | MW क्षमता |
FGD चालू अवस्था में | ~35,000 MW |
निर्माणाधीन / आदेशित | ~75,000 MW |
अभी तक आदेश नहीं हुआ | ~100,000+ MW |
Source: CEA FGD Dashboard, MoP India, 2024 Q1
FGD लागत का वैश्विक तुलना में स्थान
देश | लागत (USD/MW) | टिप्पणी |
भारत | $125,000 (₹1.2 Cr) | कम पर कार्यान्वयन धीमा |
चीन | ~$100,000 | सब्सिडी आधारित, निर्माण तेजी से |
अमेरिका | ~$150,000 | सख्त पर्यावरण मानक |
World Bank Environmental Economics Series, 2018
- भारत में FGD इंस्टॉलेशन पर ₹2.5 लाख करोड़ तक खर्च होने की संभावना है।
- इसके साथ ही हर वर्ष ₹20,000+ करोड़ की रखरखाव लागत भी जुड़ी है।
- लेकिन IIT दिल्ली और CEA के अध्ययन के अनुसार, इतनी भारी लागत के बावजूद वायु गुणवत्ता में सुधार सीमित और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होने की संभावना है।
सुझाव
- FGD परियोजनाओं का Life Cycle Cost (LCC) और Impact Assessment जरूरी है।
- इस राशि को FGD के बजाय रिन्युएबल एनर्जी में निवेश करने से अधिक पर्यावरणीय लाभ हो सकते हैं।
- जिन संयंत्रों की आयु 20 वर्ष से अधिक है, वहाँ FGD की बजाय phase-out रणनीति अपनाई जाए।