बिजली निजीकरण या करोड़ों की डील? यूपी में पावर प्रोजेक्ट पर घोटाले की आशंका, उठी CBI जांच की मांग
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण में भ्रष्टाचार और कॉरपोरेट गठजोड़ की आशंका को लेकर प्रदेश का बिजली क्षेत्र फिर उबाल पर है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूरे निजीकरण प्रकरण की CBI जांच की मांग की है। समिति का दावा है कि यह मामला हज़ारों करोड़ की सार्वजनिक संपत्ति की लूट का खाका है, जिसे अब विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने भी पुष्ट किया है।
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट
संघर्ष समिति द्वारा मार्च 2025 में गठित एक विशेष विशेषज्ञ जांच समिति, जिसमें शामिल थे – नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स, किसान मंच, उपभोक्ता परिषद और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया जैसे संगठनों के प्रतिनिधि – ने अपनी रिपोर्ट में पांच बेहद गंभीर बिंदुओं को रेखांकित किया है, जो सीधे-सीधे पावर कारपोरेशन प्रबंधन और निजी कंपनियों की मिलीभगत की ओर इशारा करते हैं।
जानिए वे पाँच अहम बिंदु जिनसे उठता है बड़ा सवाल
1. लखनऊ मीटिंग-निजीकरण की नींव या मिलीभगत का मंच?
नवंबर 2024 में लखनऊ में एक बंद कमरे की मीटिंग में बड़ी निजी कंपनियों ने प्रायोजन किया और इसी मंच पर डिस्कॉम एसोसिएशन बनाई गई। समिति का आरोप है कि इस मंच का उपयोग निजीकरण की रणनीति तय करने के लिए किया गया और पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल को उसका जनरल सेक्रेटरी बना दिया गया।
2. ग्रांट थॉर्टन की संदिग्ध भूमिका
ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन की नियुक्ति में हितों के टकराव, झूठे शपथ पत्र और अमेरिका में पेनल्टी जैसे गंभीर तथ्य उजागर होने के बावजूद उसे हटाया नहीं गया। उल्टा, उसी कंपनी से निजीकरण के डॉक्यूमेंट तैयार कराए गए।
3. ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025
इस दस्तावेज़ को पब्लिक डोमेन में आज तक साझा नहीं किया गया, न ही इस पर किसी से आपत्ति मांगी गई। समिति का दावा है कि यह सब एक सुनियोजित गुप्त प्रक्रिया के तहत हुआ ताकि विरोध दर्ज न हो सके।
4. निदेशक वित्त निधि नारंग
समिति ने निदेशक वित्त निधि नारंग की भूमिका को सबसे संदिग्ध बताया है, जिन्हें सिर्फ निजीकरण के लिए तीन बार सेवा विस्तार मिला। आरोप है कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट सीधे उनके कक्ष में बैठकर डॉक्यूमेंट बनाता रहा और कर्मचारियों पर दस्तखत करने का दबाव डाला गया।
5. इक्विटी ट्रिक से लूट की तैयारी?
दोनों डिस्कॉम को कौड़ियों के मोल बेचने की तैयारी है, वो भी उस रणनीति के तहत जहां इक्विटी को लॉन्ग टर्म लोन में बदलकर 42 जनपदों की विद्युत परिसंपत्ति को मनचाहे कॉरपोरेट घरानों को सौंपा जाएगा।
संघर्ष समिति का सीधा आरोप और माँग
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे,संजय सिंह चौहान, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पी.के.दीक्षित, सुहैल आबिद, चंद्र भूषण उपाध्याय, विवेक सिंह, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, आर बी सिंह, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, रामचरण सिंह, श्रीचन्द, सरजू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, देवेन्द्र पाण्डेय, के.एस. रावत, राम निवास त्यागी, प्रेम नाथ राय, शशिकान्त श्रीवास्तव, मो इलियास, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, विशम्भर सिंह आदि पदाधिकारियों ने संयुक्त बयान में कहा कि यह प्रकरण केवल नीतिगत मुद्दा नहीं, बल्कि सीधा भ्रष्टाचार का मामला है और इसकी CBI जांच तत्काल जरूरी है।
क्या बोले अन्य संगठनों के प्रतिनिधि
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने मामले को "गंभीर नैतिक और प्रशासनिक चूक" बताया।किसान मंच, उपभोक्ता परिषद और ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों ने घोषणा की कि यदि यह जांच नहीं हुई, तो जनांदोलन और तेज होगा।
निजीकरण रुके वरना बड़ा जन आंदोलन
संघर्ष समिति ने कहा है कि जब तक निजीकरण रोका नहीं जाता और CBI जांच शुरू नहीं होती, तब तक बिजली कर्मी, किसान, उपभोक्ता, सरकारी कर्मचारी और जन संगठन सड़कों पर उतरते रहेंगे। यह लड़ाई अब केवल कर्मियों की नहीं, बल्कि प्रदेश की सार्वजनिक संपत्ति को बचाने की लड़ाई है।
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