अब MRI की नहीं पड़ेगी ज़रूरत! भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया पॉकेट साइज ब्रेन स्कैनर
चंद्रयान हो या खनिज खोज, अब हर जगह चलेगा भारत का क्वांटम मैग्नेटोमीटर!
भारत के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित की है, जो अब तक असंभव माने जा रहे काम को आसान बना सकती है। रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया क्वांटम मैग्नेटोमीटर तैयार किया है, जो बिना भारी सुरक्षा कवच या विशेष प्रयोगशाला के भी चुंबकीय क्षेत्रों की सटीक माप कर सकता है। इसका नाम है – रमन-ड्रिवेन स्पिन नॉइज़ स्पेक्ट्रोस्कोपी (RDSNS)।
क्या है मैग्नेटोमीटर
मैग्नेटोमीटर वो उपकरण होते हैं जो किसी स्थान पर चुंबकीय क्षेत्र की ताकत को मापते हैं। इनका उपयोग चिकित्सा (जैसे मस्तिष्क स्कैन), नेविगेशन, खनन, अंतरिक्ष अध्ययन, और फिजिक्स रिसर्च जैसे अनेक क्षेत्रों में किया जाता है। लेकिन अब तक के अधिकतर मैग्नेटोमीटर बड़े, महंगे, और प्रयोगशाला तक सीमित होते थे।
अब बदलाव की बारी है क्वांटम छलांग
आरआरआई के वैज्ञानिकों ने जो तकनीक विकसित की है, वह पूरी तरह ऑप्टिकल है – यानी इसमें कोई चलता-फिरता भाग नहीं है। यह तकनीक बहुत छोटे क्वांटम कणों, जैसे रुबिडियम परमाणुओं की गतिविधियों को मापने के लिए लेजर लाइट का प्रयोग करती है।
इन परमाणुओं के अंदर छोटे-छोटे चुंबकीय बदलाव होते हैं जिन्हें स्पिन शोर कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने यह पाया कि जब कोई चुंबकीय क्षेत्र इन परमाणुओं पर असर करता है, तो यह शोर एक खास ढंग से बदलता है। इस पैटर्न को पकड़कर वैज्ञानिक चुंबकीय क्षेत्र की ताकत को माप सकते हैं – और वो भी बिना परमाणुओं को छुए या परेशान किए!

ये हैं इसकी खास बातें
यह तकनीक बहुत कम चुंबकीय क्षेत्र से लेकर बहुत अधिक चुंबकीय क्षेत्र तक, सभी को माप सकती है। इसमें कोई विशेष परिरक्षण (shielding) की जरूरत नहीं होती – यानी इसे खुले, शोरगुल वाले वातावरण में भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। विद्युत हस्तक्षेप और कंपन का असर नहीं होता जो सामान्य मैग्नेटोमीटर के साथ बड़ी समस्या होती है।इसकी संवेदनशीलता इतनी अधिक है कि यह 100 हर्ट्ज पर 30 पिकोटेस्ला तक की चुंबकीय ताकत को पहचान सकता है जो विश्वस्तरीय प्रयोगशाला प्रणालियों के बराबर है।
यहाँ -यहाँ हो सकता है इसका उपयोग
1. मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की जांच में – MRI की तरह, लेकिन ज़्यादा सटीक और सरल
आजकल मस्तिष्क के भीतर की गतिविधियों को समझने के लिए महंगे और बड़े MRI या MEG (Magnetoencephalography) स्कैनर का उपयोग होता है, जिनमें भारी चुंबकीय परिरक्षण और विशेष वातावरण की ज़रूरत होती है। लेकिन RDSNS तकनीक की मदद से मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न नन्हे-नन्हे चुंबकीय संकेतों को बिना किसी बाधा के मापा जा सकता है। यह पूरी प्रक्रिया गैर-आक्रामक (non-invasive) होती है यानी शरीर के अंदर कुछ डाला नहीं जाता। यह तकनीक शांत (noise-free) होती है, जिससे रोगी को आराम रहता है। इसका कॉम्पैक्ट और पोर्टेबल होना, इसे ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों तक ले जाना संभव बनाता है यानी अब महंगे MRI सेंटर तक जाने की ज़रूरत नहीं।
आने वाले समय में यह तकनीक मानसिक रोगों की बेहतर जांच, नींद के अध्ययन, ब्रेन-वेव मॉनिटरिंग और पैरेलाइज्ड पेशेंट्स की न्यूरल एक्टिविटी ट्रैकिंग में उपयोगी साबित हो सकती है।
2. खनिज खोज में – ज़मीन के नीचे की रहस्यमयी परतों को समझना आसान
खनिजों की खोज में अक्सर भूगर्भीय बदलावों और चट्टानों के चुंबकीय गुणों का अध्ययन किया जाता है। इस नई तकनीक के माध्यम से ज़मीन के नीचे मौजूद खनिज जमाव, जैसे लौह अयस्क, मैग्नेटाइट, कोबाल्ट आदि से उत्पन्न सूक्ष्म चुंबकीय बदलावों को आसानी से मापा जा सकता है। पारंपरिक भारी-भरकम जियो-मैग्नेटिक उपकरणों के विपरीत, यह हल्का, पोर्टेबल और तेज़ है। यह खराब मौसम या दूरस्थ स्थानों में भी बिना विद्युत हस्तक्षेप के काम करता है। खनन से पहले सटीक स्थान निर्धारण और गहराई की जानकारी देने में सहायक है।
यह तकनीक खनन कंपनियों, भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग और पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
3. अंतरिक्ष मिशन में – ग्रहों और तारों की चुंबकीय दुनिया में झाँकने का एक हल्का उपाय
अंतरिक्ष अन्वेषण में एक बड़ी चुनौती होती है। वहां वजन, ऊर्जा और स्पेस तीनों सीमित होते हैं। लेकिन अब यह कॉम्पैक्ट क्वांटम मैग्नेटोमीटर किसी ग्रह, उपग्रह या अंतरिक्ष यान में आसानी से लगाया जा सकता है। यह वहां मौजूद चुंबकीय क्षेत्रों की सटीक और निरंतर माप कर सकता है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि किसी ग्रह का कोर कैसा है, उसमें मैग्नेटिक फील्ड क्यों है या नहीं है, और वो कितना पुराना है। साथ ही, यह अंतरिक्ष में सौर तूफानों, ब्रह्मांडीय किरणों और एक्सट्रीम वातावरण में भी काम कर सकता है।
इससे मंगल, चंद्रमा और बृहस्पति जैसे ग्रहों पर भविष्य के मिशनों के लिए नेविगेशन, वैज्ञानिक अध्ययन और संरचनात्मक योजना में नई दिशा मिलेगी।
4. औद्योगिक और सैन्य उपयोग – तेज़, विश्वसनीय और क्षेत्र में तुरंत इस्तेमाल योग्य
आज के औद्योगिक और रक्षा क्षेत्रों में चुंबकीय हस्तक्षेप या रिसाव को पहचानना और नियंत्रित करना बेहद ज़रूरी होता जा रहा है। RDSNS आधारित मैग्नेटोमीटर फैक्ट्रियों में मशीनों की चुंबकीय स्वास्थ्य निगरानी, यानी मोटर, ट्रांसफार्मर, या चुंबकीय सेंसर में खराबी को पहले ही पकड़ सकता है। मिलिट्री में बारूदी सुरंगों या छुपे उपकरणों का पता लगाने के लिए उपयोगी है, जो चुंबकीय क्षेत्र में सूक्ष्म बदलाव करते हैं। सबमरीन या एयरक्राफ्ट के चुंबकीय हस्ताक्षर को मापने और नियंत्रित करने के लिए बेहद जरूरी उपकरण साबित हो सकता है।संवेदनशील सैन्य या औद्योगिक स्थलों पर सुरक्षा के लिए चुंबकीय घुसपैठ मॉनिटरिंग में भी इसकी बड़ी भूमिका हो सकती है।
इसके पोर्टेबल, ऑप्टिकल और बिना हिलते-पुर्जों के डिजाइन के कारण, यह कठिन हालात में भी टिकाऊ है और बिजली की खपत भी कम करता है।
भारत की क्वांटम दौड़ में एक मज़बूत कदम
यह खोज राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के अंतर्गत हुई है और इसे अंतरराष्ट्रीय पत्रिका IEEE Transactions on Instrumentation and Measurement में प्रकाशित किया गया है। शोध का नेतृत्व कर रही पीएचडी छात्रा सयारी कहती हैं, “हमने उच्च संवेदनशीलता को असामान्य रूप से बड़ी गतिशील रेंज के साथ जोड़ा है – जो सामान्यतः संभव नहीं होता।”
क्वांटम मिक्सचर लैब (क्यूमिक्स) के प्रमुख डॉ. सप्तऋषि चौधरी के अनुसार, यह तकनीक भारत को वैश्विक क्वांटम टेक्नोलॉजी रेस में एक मज़बूत दावेदार बनाती है। वे आगे MEMS तकनीक से इसे और छोटा, सस्ता और चिप-जैसा बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
यह नई तकनीक विज्ञान को सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि उसे आम जीवन के क्षेत्रों में लाने का रास्ता खोलेगी। मैग्नेटोमेट्री में यह ‘क्वांटम छलांग’ वास्तव में भारत की तकनीकी प्रगति का प्रतीक है जो हमें बता रही है कि भविष्य की दिशा अब हम खुद तय कर सकते हैं।