क्वांटम ध्वनि बनी भारतीय वैज्ञानिकों की नई खोज का आधार, उलझाव को नुकसान नहीं, फायदा पहुंचा सकती है
"जिसे दुश्मन समझा, वह बन गई मददगार" – भारतीय वैज्ञानिकों की नई खोज ने क्वांटम ध्वनि को लेकर पुराने वैज्ञानिक नजरिए को बदल दिया है।
कभी क्वांटम प्रणालियों के लिए ख़तरनाक मानी जाने वाली क्वांटम ध्वनि अब एक मित्र की भूमिका निभा सकती है। भारत के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने पाया कि यह ध्वनि, विशेष परिस्थितियों में क्वांटम उलझाव (Quantum Entanglement) को नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि उसे जन्म भी दे सकती है और पुनर्जीवित भी कर सकती है।
इस अध्ययन के केंद्र में है “इंट्रापार्टिकल एंटैंगलमेंट” (अंतःकणीय उलझाव) यानी एक ही कण के अंदर मौजूद गुणों के बीच की रहस्यमयी कड़ी। यह पारंपरिक "इंटर-पार्टिकल" उलझाव (दो कणों के बीच) की तुलना में ध्वनि के प्रति अधिक लचीला और टिकाऊ पाया गया।
एम्पलीट्यूड डेम्पिंग ध्वनि जैसी स्थिति, जो पहले नुकसानदायक मानी जाती थी, वह अब न सिर्फ उलझाव को बचाती है, बल्कि बिना उलझाव वाली अवस्था में भी उलझाव उत्पन्न कर सकती है।
प्रमुख वैज्ञानिक अनिमेष सिन्हा रॉय और प्रोफेसर उर्बसी सिन्हा की टीम ने इस खोज को ग्लोबल नॉइज मॉडल पर आधारित कर पेश किया है, जो व्यावहारिक क्वांटम तकनीक के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरा है। इस खोज को "फ्रंटियर्स इन क्वांटम साइंस एंड टेक्नोलॉजी" में प्रकाशित किया गया है।
बोस इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर दीपांकर होम ने इसे “वास्तविक सफलता” बताते हुए कहा कि इससे क्वांटम कंप्यूटिंग और संचार में नए द्वार खुलेंगे।
यह शोध “Frontiers in Quantum Science and Technology” में प्रकाशित हुआ है ।

क्या है क्वांटम उलझाव
यह क्वांटम यांत्रिकी की एक रहस्यमयी अवस्था है जिसमें दो या दो से अधिक कण इतने गहरे स्तर पर आपस में जुड़े होते हैं कि एक में बदलाव आने से दूसरे पर भी तुरंत असर पड़ता है चाहे वे कितनी भी दूर क्यों न हों। आइंस्टीन ने इसे “Spooky Action at a Distance” कहा था।
अब तक माना जाता रहा है कि वातावरण में मौजूद "ध्वनि" या "शोर" जिसे वैज्ञानिक भाषा में नॉइज़ (Noise) कहा जाता है इन उलझनों को डिकोहेरेंस के माध्यम से खत्म कर देती है। लेकिन यह नया अध्ययन इस सोच को तोड़ता है।
वैश्विक और व्यावहारिक महत्त्व
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यह शोध फोटॉन, न्यूट्रॉन और ट्रैप्ड आयन जैसे कई प्लेटफॉर्म पर लागू किया जा सकता है।
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यह राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और इंडिया-ट्रेंटो प्रोग्राम के अंतर्गत संचालित हो रहा है।
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इससे स्थिर क्वांटम कंप्यूटर, क्वांटम इंटरनेट और क्वांटम एन्क्रिप्शन जैसी तकनीकों का मार्ग प्रशस्त होगा।