पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निजीकरण पर हलचल, CAG की जांच से बढ़ी गर्मी

पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण
फाइल फोटो

उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण प्रणाली के निजीकरण को लेकर चल रही कवायद पर एक नया मोड़ आ गया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण से पहले केंद्र सरकार की एजेंसी सीएजी (महालेखा परीक्षक) द्वारा दस्तावेज़ तलब किए जाने के बाद मामला गहराता जा रहा है। अब इस पूरे मामले में सरकार द्वारा खर्च किए गए सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और संभावित भ्रष्टाचार की जांच की मांग जोर पकड़ने लगी है।

सूत्रों के मुताबिक, सीएजी ने यूपी पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) को पत्र भेजकर वित्तीय वर्ष 2024-25 के ऑडिट से पहले निजीकरण से संबंधित सभी प्रस्तावों, फाइलों, प्रलेखों व निर्णयों की कॉपी मांगी है। यह भी जानकारी मांगी गई है कि किन शर्तों और प्रक्रियाओं के तहत निजीकरण प्रस्ताव तैयार किया गया और इसके पीछे कौन से वित्तीय तर्क दिए गए हैं।

उधर पावर कॉरपोरेशन के निदेशक वित्त निधि कुमार नारंग ने सीएजी द्वारा पत्र भेजे जाने की पुष्टि करते हुए इसे नियमित ऑडिट की प्रक्रिया बताया है। कहा है कि दस्तावेज़ों की माँग कोई असामान्य बात नहीं है और सरकार की पारदर्शिता को दर्शाती है।

बहरहाल CAG की दस्तक ने सम्भवतः ऊर्जा निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया को केवल नीतिगत नहीं, लेखा-परीक्षा और उत्तरदायित्व के दायरे में ला दिया है। अब देखना यह होगा कि सरकार किस हद तक जांच को स्वीकार करती है और क्या इस प्रक्रिया को फिर से पारदर्शिता के साथ परिभाषित किया जाएगा, या फिर यह एक और विवादित निर्णय के रूप में दर्ज होगा।

42 जिलों का निजीकरण प्रस्ताव

सीएजी की रिपोर्ट मांगने के बाद सामने आया है कि 42 जिलों की बिजली व्यवस्था के निजीकरण पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। निजीकरण को लेकर राज्य सरकार द्वारा पूर्व में बनाई गई रणनीति में पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजी हाथों में सौंपने की सिफारिश की गई थी। इसके खिलाफ प्रदेशभर में विद्युत कर्मचारी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

करोड़ों रुपये के खर्च पर सवाल

प्राप्त जानकारी के अनुसार, दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में 7,434 करोड़ रुपये और पूर्वांचल में 9,481 करोड़ रुपये की सरकारी धनराशि खर्च की गई है। उपभोक्ता परिषद और कर्मचारी संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह पूरा मामला सरकारी धन के दुरुपयोग और निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की साजिश प्रतीत होता है। परिषद ने कहा कि यदि सीएजी जांच को गंभीरता से अंजाम दिया गया तो कई बड़े घोटाले उजागर हो सकते हैं।

विरोध और जांच की मांग तेज

वहीं, बिजली कर्मचारी यूनियनों और उपभोक्ता संगठनों ने मांग की है कि पूरे निजीकरण प्रस्ताव को तत्काल रद्द किया जाए और उच्चस्तरीय स्वतंत्र जांच कराई जाए। नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लॉइज एंड इंजीनियर्स ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार निजीकरण को आगे बढ़ाती है तो राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जाएगी।

 

 

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