निजीकरण पर फिर गरजा इंजीनियरों का गुस्सा
फेल हो रही नीति पर उठाये सवाल
भारत में बिजली क्षेत्र के निजीकरण को लेकर वर्षों से चल रहा असंतोष अब निर्णायक मोड़ पर पहुँचता दिख रहा है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) की फेडरल काउंसिल की लखनऊ में हुई बैठक में देशभर के इंजीनियरों ने सरकारों को स्पष्ट चेतावनी दी यदि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में निजीकरण की प्रक्रिया तुरंत रद्द नहीं की गई तो पूरे देश के बिजली अभियंता और कर्मचारी सड़कों पर उतरेंगे।
बैठक की अध्यक्षता कर रहे फेडरेशन के चेयरमैन इंजीनियर शैलेन्द्र दुबे ने सरकारों को दो टूक शब्दों में चेताया कि "किसानों और गरीब उपभोक्ताओं के हित में बिजली क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र में ही बनाए रखा जाना चाहिए। यदि सरकारें नहीं मानीं, तो यह आंदोलन अब राज्य सीमाओं से निकलकर राष्ट्रीय आंदोलन में बदलेगा।"
विफल हो चुकी निजीकरण की प्रयोगशालाएँ
बैठक में पूर्व के उदाहरणों को सामने रखते हुए उड़ीसा का तीन बार का असफल निजीकरण मॉडल विशेष रूप से चर्चा में रहा। पहले अमेरिका की कंपनी AES, फिर रिलायंस, और अब टाटा पावर सभी उपभोक्ता सेवा में नाकाम रहे। 15 जुलाई 2025 को उड़ीसा विद्युत नियामक आयोग ने खुद संज्ञान लेते हुए टाटा पावर की चारों डिस्कॉम्स को नोटिस जारी किया।
फेडरेशन ने कहा "जब उड़ीसा में तीन बार निजीकरण पूरी तरह असफल हो गया, तो सरकारें उसी राह पर बार-बार क्यों चल रही हैं?"
यूपी-महाराष्ट्र में घोटाले का आरोप
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बिजली निजीकरण की प्रक्रिया को लेकर ‘मेगा स्कैम’ का गंभीर आरोप लगाया गया। फेडरेशन का कहना है कि ग्रांट थॉर्नटन जैसी विवादास्पद कंसल्टिंग एजेंसी को चुनिंदा निजी कंपनियों के पक्ष में RFP दस्तावेज तैयार करने के लिए लगाया गया है,वह भी बिना लाइन लॉस, परिसंपत्ति मूल्यांकन या संभावित राजस्व अनुमान के।
फेडरेशन का दावा है कि UP के दो डिस्कॉम पूर्वांचल और दक्षिणांचल की परिसंपत्तियाँ करीब ₹1 लाख करोड़ की हैं, जिन्हें "कौड़ियों के भाव" निजी हाथों में सौंपा जा रहा है।
कर्मचारी उत्पीड़न और दमन
फेडरेशन ने बिजली कर्मियों पर हो रहे उत्पीड़न को लेकर कड़े शब्दों में निंदा की। बैठक में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में हजारों कर्मचारियों का मनमाना तबादला किया गया,फेसियल अटेंडेंस न देने पर वेतन रोका गया,शीर्ष पदाधिकारियों पर विजिलेंस जांच और एफआईआर, संविदा कर्मियों की छंटनी की गई। इसके अलावा कर्मचारियों के घरों पर पुलिस के साथ जबरन स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं
फेडरेशन ने कहा कि ये सभी कार्य UP Electricity Reform Act 1999 और Transfer Scheme 2000 का खुला उल्लंघन है। इन दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से कर्मचारियों की बिजली रियायत और मेडिकल सुविधा को "टर्मिनल बेनिफिट" बताया गया है, जिसे बिना सहमति बदला नहीं जा सकता।
उत्पादन व पारेषण क्षेत्र में भी खतरा
फेडरेशन ने स्पष्ट किया कि Joint Venture मॉडल के ज़रिए राज्य सरकारें अपने खुद के उत्पादन संयंत्रों से हाथ धो रही हैं। ओबरा-डी (2×800 मेगावाट) और अनपरा-ई (2×800 मेगावाट) की परियोजनाओं का निजीकरण इसका उदाहरण हैं। इससे उपभोक्ताओं को मिलने वाली बिजली महंगी होगी।
इसी तरह, पारेषण (Transmission) क्षेत्र में टैरिफ बेस्ड कंपटीटिव बिडिंग और एसेट मोनेटाइजेशन के बहाने निजीकरण की साजिश हो रही है। फेडरेशन ने चेताया कि अगर समय रहते नहीं रोका गया, तो पूरा पारेषण नेटवर्क भी निजी हाथों में चला जाएगा।
देशभर के अभियंताओं ने दिखाई एकजुटता
इस बैठक में तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, दामोदर घाटी, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ प्रतिनिधि मौजूद रहे।
बैठक में यह भी प्रस्ताव पारित हुआ कि यदि सरकारों ने निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई, तो देशभर में बिजली अभियंताओं का संयुक्त राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा।
जनता से समर्थन की अपील
फेडरेशन ने उपभोक्ताओं से भी सीधी अपील की है "यह लड़ाई केवल बिजली कर्मचारियों की नहीं है। यह किसानों, गरीबों और आम नागरिकों की सस्ती और भरोसेमंद बिजली की लड़ाई है। निजीकरण के बाद ना केवल बिजली महंगी होगी, बल्कि ग्रामीण इलाकों की सेवा भी प्रभावित होगी।"
जहाँ एक ओर सरकारें बिजली क्षेत्र में निजीकरण को "सुधार" और "दक्षता" के नाम पर आगे बढ़ा रही हैं, वहीं ज़मीनी हकीकत और लगातार फेल होते मॉडल बता रहे हैं कि निजीकरण कोई स्थायी समाधान नहीं, बल्कि समस्या को और गहरा करने वाला कदम है।
बिजली इंजीनियरों की यह चेतावनी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यदि यह नीति नहीं बदली गई तो आने वाले समय में सरकार को देशव्यापी आंदोलन का सामना करना पड़ सकता है और इस बार सिर्फ कर्मचारी नहीं, उपभोक्ता भी इसमें शामिल होंगे।
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