घाटे का राष्ट्रीयकरण, मुनाफे का निजीकरण-संघर्ष समिति

मेरठ में प्रबंध निदेशक कार्यालय का घेराव

मेरठ में उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के प्रबंध निदेशक कार्यालय का घेराव करते हुए सैकड़ों बिजलीकर्मियों

उत्तर प्रदेश के बिजलीकर्मियों का आक्रोश अब और तीव्र होता जा रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने सोमवार को ऊर्जा मंत्री के "बिजली जनसेवा है, दुकान नहीं" वाले बयान का हवाला देते हुए जोरदार हमला बोला और पूछा "जब बिजली विभाग जनसेवा है तो फिर इसका निजीकरण कर इसे दुकान क्यों बनाया जा रहा है?"

मेरठ में उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के प्रबंध निदेशक कार्यालय का घेराव करते हुए सैकड़ों बिजलीकर्मियों ने जोरदार प्रदर्शन किया। यह विरोध लगातार 239वें दिन जारी रहा, जिसमें कर्मचारियों ने निजीकरण, वेतन रोके जाने, निलंबन और स्मार्ट मीटर जैसे मुद्दों को लेकर शासन पर गहरा असंतोष जताया।

निजीकरण को बताया "मुनाफे का व्यापार"

संघर्ष समिति के नेताओं ने कहा कि बिजली निजी कंपनियों के लिए सिर्फ मुनाफा कमाने का जरिया है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र गरीबों और किसानों के लिए राहत का माध्यम है। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने कहा कि आगरा में कार्यरत टोरेंट पावर कंपनी 2 किलोवाट के कनेक्शन के लिए उपभोक्ताओं से 9 लाख रुपये तक की मांग कर रही है।

वहीं ग्रेटर नोएडा में पहले से निजीकरण होने के बावजूद, किसानों को मुफ्त बिजली नहीं दी जा रही, जबकि सरकारी डिस्कॉम मुफ्त बिजली दे रहे हैं।

घाटे का राष्ट्रीयकरण, मुनाफे का निजीकरण

संघर्ष समिति ने निजी कंपनियों की नीयत और कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि उड़ीसा में टाटा पावर की चारों कंपनियों को हाल ही में OERC (उड़ीसा विद्युत नियामक आयोग) ने नोटिस जारी कर उपभोक्ता सेवाओं में विफल रहने पर जन सुनवाई का आदेश दिया है।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि फरवरी 2015 में OERC ने रिलायंस पावर के सभी डिस्ट्रीब्यूशन लाइसेंस रद्द कर दिए थे, क्योंकि कंपनी उपभोक्ताओं को सेवाएं देने में पूरी तरह विफल रही थी।

ऊर्जा मंत्री के बयान को बताया "सत्य"

संघर्ष समिति ने ऊर्जा मंत्री श्री अरविंद शर्मा से आग्रह किया कि जब उन्होंने स्वयं मान लिया है कि बिजली जनसेवा है, तो उन्हें पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोक देना चाहिए।

“जनसेवा को व्यापार बनाना एक खतरनाक नीति है। यदि यह नीति जारी रही, तो न केवल उपभोक्ता महंगी बिजली झेलेंगे, बल्कि गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बिजली एक सपना बनकर रह जाएगी।”

उत्पीड़न के खिलाफ भी प्रदर्शन

संघर्ष समिति ने कर्मचारियों पर किए जा रहे दमनात्मक कार्रवाईयों का भी विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि फेशियल अटेंडेंस सिस्टम के नाम पर हजारों कर्मचारियों का वेतन रोका गया है, छोटी-बड़ी तकनीकी गड़बड़ियों पर बिना जांच के इंजीनियरों को निलंबित किया जा रहा है, और स्मार्ट मीटर लगाकर कर्मचारियों को रियायती बिजली से वंचित किया जा रहा है।

बिजली कर्मचारियों की मांग है कि सभी निलंबन तत्काल निरस्त किए जाएं।फेशियल अटेंडेंस के नाम पर रोका गया वेतन तत्काल जारी किया जाए। कर्मचारियों के घरों पर स्मार्ट मीटर लगाने की योजना तत्काल रोकी जाए।

विरोध पूरे प्रदेश में फैला

यह विरोध प्रदर्शन केवल मेरठ तक सीमित नहीं है। पूरे प्रदेश के सभी जिलों, पावर प्रोजेक्ट्स और वितरण कंपनियों में लगातार प्रदर्शन जारी है। कर्मचारी संगठन साफ कर चुके हैं कि अगर सरकार ने निजीकरण की नीति और उत्पीड़न नहीं रोका, तो प्रांतव्यापी हड़ताल और उग्र आंदोलन की घोषणा भी हो सकती है।

उत्तर प्रदेश के बिजलीकर्मी अब सिर्फ नौकरी की रक्षा नहीं, बल्कि जनसेवा की व्यवस्था को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
संघर्ष समिति के अनुसार, "मुनाफे का निजीकरण और घाटे का राष्ट्रीयकरण" केवल नीति की असफलता ही नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय का प्रतीक बन चुका है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार ऊर्जा मंत्री के खुद के शब्दों पर अमल करती है या फिर जनसेवा को सच में दुकान बना देती है।

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