कार्बन उत्सर्जन को कम करने के व्यावहारिक समाधान पर चर्चा
विशाखापट्टनम-राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) ने आज विशाखापट्टनम स्टील संयंत्र के प्रबंधन विकास केंद्र में "स्टील और अन्य उद्योगों पर ध्यान के साथ प्रौद्योगिकी आवश्यकता आकलन व ऊर्जा दक्षता" विषय पर एक विचार-मंथन बैठक का आयोजन किया। ये आयोजन प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और आकलन परिषद (टीआईएफएसी) के सहयोग से किया गया। इस बैठक का मकसद था डी-कार्बोनाइजेशन के रास्तों और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के लिए विचार-मंथन करना ताकि साल 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा निर्माण और 2070 तक "नेट जीरो उत्सर्जन" के भारत के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
आरआईएनएल के सीएमडी अतुल भट्ट ने विशाखापट्टनम स्टील संयंत्र में आज इस विचार-मंथन बैठक का उद्घाटन किया। प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए श्री अतुल भट्ट ने इस्पात निर्माण और अन्य उद्योगों में स्थायी तरीकों की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने बताया कि इस्पात मंत्रालय ने इस्पात उद्योग के लिए एक रूपरेखा बनाई है और उम्मीद है कि स्टील उद्योग विजन-2047 के अनुसार कार्बन तटस्थता को हासिल करेगा। श्री अतुल भट्ट ने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी) को कम करने के विभिन्न मसलों पर विचार-मंथन करें और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए व्यावहारिक समाधान सोचें।
वैज्ञानिक /सलाहकार और टीआईएफएसी के "दूरदर्शिता और विज़न" विभाग के प्रमुख डॉ. गौतम गोस्वामी ने इस कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि टीआईएफएसी, ऐसे उद्योगों में डीकार्बोनाइजेशन के रास्ते तैयार कर रहा है, जिनमें ये कर पाना बहुत ही मुश्किल है। उन्होंने कहा कि ये कार्यशाला विभिन्न उद्योगों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर का दस्तावेज तैयार करने हेतु कार्रवाई योग्य बिंदु तैयार करेगी।
आरआईएनएल के निदेशक (संचालन) ए. के. सक्सेना, सीजीएम (वर्क्स) आई/सी, अभिजीत चक्रवर्ती और आरआईएनएल के अन्य सीजीएम ने इस कार्यशाला में भाग लिया।
बीएसपी, आईआईएससीओ, आरडीसीआईएस, ईएमडी, एएमएनएस, जेएसपीएल जैसी विभिन्न स्टील कंपनियों और एचपीसीएल, एनटीपीसी जैसे स्थानीय उद्योगों और आईआईपीई, एयू जैसे तकनीकी संस्थानों के प्रतिनिधियों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। उन्होंने इस्पात उद्योगों और अन्य उद्योगों में डी-कार्बोनाइजेशन विकल्पों के बारे में चर्चा की।