कौड़ियों के मोल बिजली विभाग की अरबों-खरबों की परिसम्पत्तियाँ बेचने की चल रही साजिश

यूपी पुनः बड़े बिजली कर्मचारी आंदोलन की ओर

निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी, पोस्टर और बैनर के साथ।

दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम के निजीकरण को लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की नाराजगी बढ़ते जा रही है। समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि पावर कारपोरेशन प्रबन्धन झूठ के सहारे अरबों-खरबों रूपये की बिजली विभाग की परिसम्पत्तियाँ पहले से तय कुछ चुनिंदा निजी घरानों को बेचने की साजिश में लगा हुआ है। प्रबन्धन ने यह कहकर कि 42 जनपदों का निजीकरण होने के बाद शेष बचे पावर कारपोरेशन में पदों में वृद्धि की जायेगी, खुद स्वीकार कर लिया है कि निजीकरण से कर्मचारियों की पदावनति और छंटनी होने वाली है।

संघर्ष समिति, उप्र के आह्वाहन पर आज राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश-भर में समस्त जनपदों एवं परियोजना मुख्यालयों पर निजीकरण के विरोध में सभायें की गयीं। सभाओं में कर्मचारियों ने चेतावनी दी कि निजीकरण की कोई भी एकतरफा कार्यवाही की गयी तो बिजली कर्मचारी लोकतांत्रिक ढंग से संघर्ष करने हेतु विवश होगें।

अविश्वसनीय है प्रबंधन 

निगम प्रबंधन पर अब संघर्ष समिति बिलकुल विश्वास नहीं करने के मूड में है। समिति ने कहा है कि कर्मचारी प्रबन्धन की बात पर कैसे भरोसा करें जब 03 दिसम्बर 2022 को मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार अवनीश कुमार अवस्थी एवं ऊर्जा मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा की उपस्थिति में हुए समझौते को प्रबन्धन ने मानने से इंकार कर दिया। यह समझौता आज दो वर्ष बीत जाने के बाद भी लागू नहीं किया गया है।

विगत 19 मार्च 2023 को ऊर्जा मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा द्वारा हड़ताल के कारण की गयी समस्त उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियाँ वापस लेने के निर्देश का पावर कारपोरेशन प्रबन्धन ने आज तक पालन हीं किया है। बहुत कम वेतन पाने वाले हजारों संविदा-निविदा कर्मचारी निकाले जाने के कारण भुखमरी के कगार पद आ गये हैं और नियमित कर्मचारियों पर भी उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियाँ चल रही है। ऐसे में कर्मचारी पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन के झूठ से गुमराह होने वाले नहीं है। 

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आई ए एस प्रबन्धन है समस्या की जड़ 

संघर्ष समिति के अनुसार वर्ष 2000 में विद्युत परिषद का विघटन होने के समय तक अभियन्ता प्रबन्धन था और विद्युत परिषद बनने के बाद 1959 से 2000 तक 41 वर्षों में मात्र 77 करोड़ रूपये का घाटा था जो विद्युत परिषद का विघटन होने के बाद आई ए एस प्रबन्धन के रहते एक लाख दस हजार करोड़ रूपये केवल 24 वर्ष में पहुँच गया। मजेदार बात यह है कि घाटे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदारी प्रबन्धन की होती है किन्तु प्रबन्धन कर्मचारियों पर घाटा थोप कर अरबों-खरबों रूपये की सार्वजनिक सम्पत्ति पहले से तय कुछ निजी घरों को सौंपने जा रहा है।

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आँकड़े भ्रामक हैं

पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन द्वारा जारी किये गये घाटे के आँकड़े भ्रामक हैं और पूरी तरह झूठ का पुलिन्दा हैं। पावर कारपोरेशन प्रबन्धन के पीपीटी प्रेजेंटेशन में बिजली राजस्व बकाये की धनराशि 115825 करोड़ रूपये बतायी गयी है जिसमें दक्षिणांचल का 24947 करोड़ रूपये और पूर्वांचल का 40962 करोड़ रूपये सम्मिलित है। सवाल यह है कि यदि यह राजस्व वसूल लिया जाये तो पॉवर कारपोरेशन 5825 करोड़ के मुनाफे में है फिर घाटे का झूठ फैलाकर निजीकरण करना किस साजिश का हिस्सा है।

वर्ष 2010 में जब टोरेण्ट पॉवर को आगरा का फ्रेंचाईजी दिया गया था तब आगरा में राजस्व वसूली का 2200 करोड़ रूपये बकाया था। आज 14 साल गुजर जाने के बाद भी टोरेण्ट कम्पनी ने इस बकाये की धनराशि का एक रूपये भी पॉवर कारपोरेशन को नहीं दिया है। अब दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम, जिन्हें बेच जा रहा है, उनका बकाया लगभग 66000 करोड़ रूपये है। निजीकरण के बाद यह 66000 करोड़ रूपये डूब जायेगा और निजी कम्पनियों की जेब में चला जायेगा। ऐसा लगता है कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन इस साँठ-गाँठ का हिस्सा है।

निजीकरण के बाद शेष बचे पॉवर कारपोरेशन में नये पदों का सृजन किया जायेगा और न ही किसी की पदावनति होगी और न ही किसी की छंटनी होगी, यह कहकर पावर कारपोरेशन ने खुद स्वीकार कर लिया है कि निजीकरण के बाद पदावनति और छंटनी होने वाली है।

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ये रहे मौजूद 

संघर्ष समिति के पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह मौजूद रहे। 

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