2032 तक भारत की हाइड्रोजन मांग होगी 8.8 MTPA

ओडिशा, गुजरात और कर्नाटक बनेंगे भारत के हाइड्रोजन हब

 IESW 2025 में IESA रिपोर्ट

नई दिल्ली, 8 जुलाई 2025- भारत एनर्जी स्टोरेज एलायंस (IESA) द्वारा आयोजित इंडिया एनर्जी स्टोरेज वीक (IESW) 2025 का 11वां संस्करण आज नई दिल्ली स्थित IICC यशोभूमि में भव्य उद्घाटन समारोह के साथ प्रारंभ हुआ। इस अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में 200 से अधिक वैश्विक ऊर्जा विशेषज्ञों और गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया।

उद्घाटन समारोह में डॉ. अजय माथुर, पूर्व महानिदेशक, इंटरनेशनल सोलर अलायंस एवं प्रोफेसर, आईआईटी दिल्ली, मालिनी दत्त, ट्रेड और इन्वेस्टमेंट कमिश्नर – इंडिया, न्यू साउथ वेल्स सरकार, मनीष शर्मा, चेयरमैन, पैनासोनिक,स्टीफन फर्नांड्स, संस्थापक एवं अध्यक्ष, कस्टमाइज्ड एनर्जी सॉल्यूशन्स (CES), विनायक वलीम्बे, प्रबंध निदेशक, CES, देबमाल्य सेन, अध्यक्ष, IESA आदि प्रमुख अतिथि शामिल रहे। 

डॉ. अजय माथुर ने कहा, "IESW 2025 बैटरी और स्टोरेज से जुड़े समुदायों की सामूहिक आकांक्षाओं का प्रतीक है। यह ऐसा मंच है जहां बैटरी निर्माण, अनुप्रयोग और विद्युत मांग से जुड़े विशेषज्ञ एक-दूसरे से सीख सकते हैं और क्षेत्र की गहन समझ विकसित कर सकते हैं।"

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उद्घाटन सत्र में IESA ने भारत के हाइड्रोजन परिदृश्य पर अपनी रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि देश में हाइड्रोजन की मांग 2032 तक 8.8 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) तक पहुंचने की संभावना है, जिसमें 3% की वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) रहने की उम्मीद है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अभी तक 9 MTPA से अधिक की ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं की घोषणा हो चुकी है, लेकिन अधिकांश ने अंतिम निवेश निर्णय (FID) या लंबी अवधि के ऑफटेक समझौते नहीं किए हैं। यदि वर्तमान परिदृश्य के तहत 30% क्षमता कार्यान्वित होती है, तो इलेक्ट्रोलिटिक और जैव-हाइड्रोजन लगभग 31% घरेलू मांग को पूरा कर सकते हैं।

विनायक वलीम्बे ने कहा, "सरकार की नीतियों और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के प्रयासों के बावजूद, अभी भी डिकार्बनाइजेशन की दिशा में कई चुनौतियां हैं। IESA की यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं और उद्योग नेताओं को आवश्यक जागरूकता प्रदान करती है।"

IESA की रिपोर्ट में ‘राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ की प्रमुख पहलों जैसे SIGHT (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition) के अंतर्गत ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण, और ग्रीन अमोनिया एकत्रीकरण के लिए फंडिंग का विश्लेषण किया गया है।

घोषित परियोजनाओं में 82% क्षमता चार राज्यों में केंद्रित है जिसमे ओडिशा (38%), गुजरात (26%), कर्नाटक (12%), आंध्र प्रदेश (6%) हैं। इसके अतिरिक्त, 72% परियोजनाएं अमोनिया उत्पादन पर केंद्रित हैं, जबकि 20% ने अपने अंतिम उपयोग की जानकारी नहीं दी है।

IESA के अध्यक्ष देबमाल्य सेन ने कहा, “भारत के हरित ऊर्जा मिशन को गति देने में IESW 2025 निर्णायक भूमिका निभा रहा है। यह सम्मेलन सरकार, उद्योग और वैश्विक विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर ऊर्जा संक्रमण की दिशा में नए मार्ग प्रशस्त करेगा।"

रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रोलिसिस आधारित हाइड्रोजन उत्पादन की स्तरीकृत लागत (LCOH) अभी भी जीवाश्म-आधारित हाइड्रोजन से 2 से 4 गुना अधिक है। प्रमुख लागत घटक बिजली शुल्क, इलेक्ट्रोलाइज़र की पूंजीगत लागत, उपयोग दर शामिल है। 

यह लागत सब्सिडी और नीतिगत समर्थन के बिना निकट भविष्य में जीवाश्म ईंधन से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगी, हालांकि भारत की पहली ग्रीन हाइड्रोजन नीलामी में कीमतें कम हुई हैं, जो आशाजनक संकेत देती हैं।

वहीं, उद्योग उपभोक्ताओं को अभी भी भंडारण और परिवहन लागतों के कारण उच्च लैंडेड कॉस्ट का सामना करना पड़ता है। ओपन-एक्सेस बिजली नियमों की सीमाएं भी इस मार्ग में अड़चन पैदा कर रही हैं।

IESW 2025 में 20 से अधिक देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इस आयोजन के दौरान 300 से अधिक उत्पाद नवाचारों के प्रदर्शन के साथ-साथ भारत के शीर्ष निर्माताओं द्वारा सात से अधिक फैक्ट्री और उत्पाद घोषणाएं भी होने जा रही हैं। इसमें EVs, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, सौर ऊर्जा, बैटरियां, और ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़े नवीनतम समाधान शामिल होंगे।

यह आयोजन न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक नई दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।

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