सरकार और उद्योग दोनों से निवेश की आवश्यकता
नई दिल्ली-अनुसंधान और शिक्षा जगत के विशेषज्ञों ने कार्बन के अभिग्रहण, उपयोग एवं भंडारण (कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज-सीसीयूएस) में सरकार और उद्योग दोनों से निवेश की आवश्यकता और सीसीयूएस के माध्यम से भारत के शुद्ध शून्य (जीरो नेट) लक्ष्यों की दिशा में सहयोगात्मक रूप से काम करने के लिए क्षेत्र के अग्रणी विशेषज्ञों के महत्व पर प्रकाश डाला है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने भारत के शुद्ध शून्य लक्ष्यों की दिशा में डीएसटी के रोडमैप पर सलाहकार विचार-मंथन सत्र में कहा कि "कार्बन के अभिग्रहण, उपयोग एवं भंडारण (कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज- सीसीयूएस) के माध्यम से कार्य के लिए बड़े पैमाने पर लागत प्रभावी तकनीकी की तैनाती के लिए निवेश और वित्त पोषण की आवश्यकता है और देश के सभी प्रमुख विशेषज्ञों को इस दिशा में काम करने के लिए एक साथ आना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी की स्थिति का मानचित्रण करने की आवश्यकता है और यह एक ऐसे सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने के लिए आधार बन सकता है “जहां सहयोगात्मक प्रयासों से इसका अनुप्रयोग हो सकता है और कुछ प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण के लिए उद्योग से संयुक्त वित्त पोषण हो भी सकता है।” विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा आयोजित विचार-मंथन सत्र में प्रोफेसर करंदीकर ने कहा कि किसी भी ठोस कार्य योजना में एक केंद्रित ऊष्मायन (इन्क्यूबेशन) कार्यक्रम बनाना और उसे वित्त पोषित करना शामिल होना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) एक ऐसे कार्यक्रम के निर्माण की दिशा में काम करेगा जो अगले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पैदा कर सकेगा।
बैठक में कार्बन के अभिग्रहण, उपयोग एवं भंडारण (कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज- सीसीयूएस) की प्रौद्योगिकियों के विकास और उनके उपयोग में तेजी लाने में सरकार की भूमिका पर जोर देने के साथ-साथ सीसीयूएस से संबंधित अवसरों और चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
डीएसटी में वरिष्ठ सलाहकार और विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) सचिव डॉ. अखिलेश गुप्ता ने उस परिदृश्य में सीसीयूएस के महत्व पर प्रकाश डाला जहां पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट से पता चला है कि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से औसतन लगभग 1.2 डिग्री ऊपर बढ़ गया है और यह ऐसी आपदा है जो हमें ही घूर रही है क्योंकि इसमें प्रति दशक लगभग 0.2 अंश (डिग्री) की वृद्धि का अनुमान है।
“हमें कई अच्छी तरह से प्रलेखित पायलटों, उनकी व्यवहार्यता के विस्तृत अध्ययन, और इस क्षेत्र में संभावित विजेताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए महत्वपूर्ण वित्त पोषण की आवश्यकता है ताकि ऐसी प्रौद्योगिकियों को विकसित किया जा सके जो प्रयुक्त होने पर वास्तव में काम कर सकें। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर रंगन बनर्जी ने कहा कि वैश्विक सहयोगात्मक प्रौद्योगिकी विकास सफलता की दिशा में एक लंबा सफर तय कर सकती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सी3ई प्रखंड (डिवीजन) की प्रमुख डॉ. अनीता गुप्ता ने डीएसटी की सीसीयूएस गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
इस विचार-मंथन में अनुसंधान और शिक्षा जगत और के साथ ही विद्युत् (थर्मल), तेल (ऑइल), इस्पात (स्टील) और सीमेंट के जिन क्षेत्रों में कार्बन से मुक्ति पाना (डीकार्बनाइजेशन) अत्यंत कठिन है, जैसे एनटीपीसी, बीएचईएल, ओएनजीसी, रिलायंस, टाटा स्टील, आदित्य बिड़ला सीमेंट, अल्ट्राटेक आदि, के कार्बन के अभिग्रहण, उपयोग एवं भंडारण (कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज- सीसीयूएस) के वरिष्ठ विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी रही।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सीओपी -26, ग्लासगो, स्कॉटलैंड में "भारत के पंचामृत अमृत तत्व" पर प्रकाश डालकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक स्थायी भविष्य का मार्ग दिखाया है। इस सम्बन्ध में जनादेश प्राप्त करने के लिए, भारत सरकार ने 2070 तक कार्बन-तटस्थ अर्थव्यवस्था की प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस संदर्भ में, कार्बन के अभिग्रहण, उपयोग एवं भंडारण (कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन और स्टोरेज- सीसीयूएस)) ने राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों संदर्भों में महत्वपूर्ण प्रासंगिकता प्राप्त कर ली है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सकल शून्य (नेट ज़ीरो) प्राथमिकताओं को परिप्रेक्ष्य में रखते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) भी सीसीयूएस के लिए एक ठोस इकोसिस्टम के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। यह राष्ट्रीय क्षमता निर्माण और बहुपक्षीय/द्विपक्षीय संबंधों के लिए संभावित अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) की दिशाओं के लिए सीसीयूएस की मूल्य श्रृंखला और उसके लिए रोडमैप के विकास में लगातार योगदान दे रहा है।
प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (टीआरएल) के प्रक्षेपवक्र (ट्रैजेक्टरी) के साथ ही सीसीयूएस की मूल्य श्रृंखला को और सुदृढ़ करने तथा प्रौद्योगिकी के वास्तविक क्षेत्र और बाज़ार तक के अंतिम मह्त्वपूर्ण छोर तक पहुचने को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संबंधित उद्योगों, सार्वजनिक क्षेत्र के लोक उपक्रमों (पीएसयूएस), अनुसंधान समूहों, शिक्षाविदों, सरकार और नीति निर्माताओं के विशेषज्ञों / प्रतिनिधियों के साथ यह परामर्शात्मक विचार-मंथन बैठक आयोजित की गई थी।
इस बैठक ने प्रासंगिक उद्योग, शिक्षा जगत, अनुसंधान समूहों और नीति निर्माताओं के बीच संवाद को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय सीसीयूएस प्रयासों को उजागर करने के साथ ही राष्ट्रीय स्थिति का आकलन करने एवं संभावित सार्वजनिक निजी भागीदारी क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता की है।