भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी खोज

सूर्य में छिपे थे अदृश्य लूप, खुला ऊर्जा का विस्फोटक रहस्य

सूर्य के वायुमंडल में खोजे गए अदृश्य प्लाज्मा लूप्स

भारतीय खगोल वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है जो न सिर्फ भारत के लिए गर्व का विषय है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय खगोल भौतिकी जगत में भी बड़ी उपलब्धि के रूप में देखी जा रही है। सूर्य के वातावरण की निचली परतों में मौजूद सूक्ष्म लेकिन विस्फोटक प्लाज्मा लूप्स को पहली बार स्पष्ट रूप से देखा गया है, जो अब तक वैज्ञानिकों की पकड़ से बाहर थे।

यह ऐतिहासिक खोज भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के वैज्ञानिकों और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों की एक टीम ने की है। इस खोज में पाया गया कि सूर्य की सतह के ठीक ऊपर, जहां का वातावरण अत्यधिक गतिशील होता है, वहां बेहद छोटे और अल्पकालिक प्लाज्मा लूप्स तेजी से बनते और खत्म होते हैं। ये लूप सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा के भंडारण और विस्फोट के रहस्य से जुड़े हैं।

क्या हैं ये लूप्स और क्यों हैं खास

ये छोटे सौर लूप 3,000 से 4,000 किलोमीटर लंबे होते हैं—यानी लगभग कश्मीर से कन्याकुमारी जितनी दूरी। लेकिन इनकी चौड़ाई 100 किलोमीटर से भी कम होती है। ये केवल कुछ ही मिनटों तक जीवित रहते हैं, इसलिए इन्हें अब तक वैज्ञानिकों की दूरबीनों से देख पाना संभव नहीं था।

लेकिन IIA की पीएचडी छात्रा अन्नू बुरा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने अत्याधुनिक तकनीकों—जैसे हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग, मल्टी-स्पेक्ट्रल डेटा और स्पेक्ट्रोस्कोपी—का उपयोग कर इन्हें पहली बार साफ-साफ देखा और समझा।

ऐसे हुई यह खोज

इस खोज में वैज्ञानिकों ने Big Bear Solar Observatory (BBSO) की गुड सोलर टेलीस्कोप, NASA के Interface Region Imaging Spectrograph (IRIS) और Solar Dynamics Observatory (SDO) से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया।

H-Alpha वर्णक्रम रेखा, जो सूर्य के क्रोमोस्फीयर की जानकारी देती है, उसके माध्यम से वैज्ञानिकों ने पाया कि ये छोटे लूप्स भी बड़े कोरोनल लूप्स की तरह ही चमकते हैं और बहुत ही नाजुक लेकिन चमकदार चाप की तरह दिखाई देते हैं।

IIA के वैज्ञानिक तन्मय सामंत ने बताया, “हमने इन लूप्स से ऊपर उठते हुए प्लाज्मा जेट्स भी देखे, जो यही संकेत देते हैं कि लूप और जेट एक ही चुंबकीय विस्फोटक प्रक्रिया का परिणाम हैं।”

ऊर्जा का विस्फोट ऐसे होता है

इन लूप्स में जो विस्फोट होता है, वह "चुंबकीय पुनर्संयोजन" नामक प्रक्रिया से होता है। इसमें उलझी हुई चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक-दूसरे से टकराकर टूटती हैं और दोबारा जुड़ती हैं, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह प्रक्रिया सूर्य की गतिविधियों और सौर ज्वालाओं (solar flares) की जड़ में होती है।

टीम ने Differential Emission Measure (DEM) Analysis का उपयोग कर यह पाया कि इन लूप्स में प्लाज्मा का तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा था—जो चौंकाने वाला है, क्योंकि ये लूप सूर्य की अपेक्षाकृत घनी परत में स्थित हैं, जहां इतनी अधिक गर्मी को बनाए रखना मुश्किल होता है।

भारत की अगली छलांग

IIA की टीम अब भविष्य की और गहराई में जाने वाली रिसर्च के लिए भारत द्वारा प्रस्तावित National Large Solar Telescope (NLST) की योजना बना रही है, जो लद्दाख के पैंगोंग झील के पास स्थापित किया जाएगा। यह 2-मीटर एपर्चर वाला टेलीस्कोप सूर्य की सतह के और भी छोटे व जटिल रहस्यों को उजागर करने में सक्षम होगा।

एक वैज्ञानिक उपलब्धि का प्रमाण

यह खोज अंतरराष्ट्रीय खगोलविज्ञान जर्नल The Astrophysical Journal में प्रकाशित की गई है। IIA की टीम के साथ अमेरिका, जर्मनी के वैज्ञानिकों का भी सहयोग रहा। यह भारत की विज्ञान और तकनीकी क्षमता का एक अनूठा उदाहरण है।

यह खोज न केवल सूर्य की गतिविधियों को समझने में मदद करेगी, बल्कि पृथ्वी पर अंतरिक्ष मौसम (space weather) के पूर्वानुमान को भी सटीक बनाने में सहायक होगी। यह सच में भारतीय विज्ञान की एक चमकदार उपलब्धि है।

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